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तृण भी साथ में नहीं चला है, तो फिर निरर्थक निस्सार धन की इतनी अधिक ममता क्यों ?
त्यज ममता-परिताप-निदानं ,
पर - परिचय - परिणामम् । भज निःसङ्गतया विशदीकृत
मनुभवसुख - रसमभिरामम् ॥ विनय० ६६ ॥ अर्थ-ममता और सन्ताप के कारणभूत पर-परिचय के परिणाम (अध्यवसाय) का तू त्याग कर दे और निस्संग बनकर अत्यन्त निर्मल अनुभव सुख का प्रास्वादन कर ।। ६६ ।।
विवेचन
निस्सङ्गता का प्रानन्द
पूज्य उपाध्यायजी म. जीवात्मा के परिताप और सन्ताप का कारण एवं उसके निदान को बतलाते हुए फरमाते हैं कि संसार की इस अनन्त यात्रा में जीवात्मा ने जो यातनाएँ सहन की हैं....जो दुःख सहन किया है....जो परिताप सहन किया है.... उसका एकमात्र कारण पर-पदार्थ का परिचय और उसकी ममता है।
जिन आत्माओं ने पर-भाव की रमणता का त्याग किया, उनको छह खण्ड का आधिपत्य भी बाँध नहीं सका।
भरत महाराजा छह खण्ड के अधिपति थे, हजारों रानियों के स्वामी थे किन्तु उनके हृदय में ममत्व भाव नहीं था, अतः
शान्त सुधारस विवेचन-१६८