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अपने विशाल बंगले की भी तू व्यर्थ ही ममता करता है। तेरा यह बंगला तो एक दिन खण्डहर हो जाएगा अथवा तुझे उसे छोड़कर जाना पड़ेगा। वह भी तुझे दुर्गति में जाने से रोक नहीं सकता है।
स्व जन आदि की भी तू व्यर्थ ही ममता करता है। उनमें से कोई भी तेरा नहीं है और न ही वे तुझे दुर्गति में जाने से बचा सकते हैं। प्रतः हे आत्मन् ! तू अपने स्वरूप का विचार कर। परलोक-प्रयारण समय ये सांसारिक सामग्रियाँ तेरा कुछ भी संरक्षण करने में समर्थ नहीं हैं।
भोजन, धन, पुत्र, पत्नी तथा देह पर सामान्यतः जीवात्मा को क्रमशः अधिक-अधिक प्रेम होता है। परन्तु ज्ञानियों का वचन है कि उन वस्तुओं को अपना मान लेने पर भी उनमें से एक भी वस्तु ऐसी नहीं है, जो जीवात्मा को दुर्गति में जाने से रोक सके।
हे प्रात्मन् ! यह जीवन तो अल्प समय के लिए है, कुछ समय बाद तो तुझे यहाँ से जाना ही पड़ेगा और परलोकप्रयाण के साथ ही तेरे ये सम्बन्ध टूट जाएंगे। फिर तू व्यर्थ उनके ममत्व का पोषण क्यों कर रहा है ?
सावधान बन जा। जीवन अल्प है।
येन सहाश्रयसेऽतिविमोहा
दिदमहमित्यविभेदम् । तदपि शरीरं नियतमधीरं,
त्यजति भवन्तं धृतखेदम् ॥ विनय० ६४ ॥
शान्त सुधारस विवेचन-१६३