________________
रस रूप अमृतरस पैदा हुआ है, उसका तू क्षण भर के लिए पान कर ले। वाह ! उस शमरस का स्वाद कितना मधुर है । उसके आगे काव्य के नौ रस और भोजन के षड्रस भी नीरस प्रतीत होते हैं। एक घटना याद आ जाती है-- • एक श्रेष्ठिपुत्र ने अपने घर से श्वसुर-गृह की ओर गमन किया। कुछ जंगली रास्ता था। मार्ग भी बड़ा विकट था, किन्तु श्रेष्ठिपुत्र के साथ कोई नहीं था। श्रेष्ठिपुत्र एक जंगल में
आ पहुँचा जहाँ तीन दिशाओं में पगडण्डियाँ जा रही थीं। श्रेष्ठिपुत्र विचार में पड़ गया, 'मैं किस ओर जाऊँ ?' तभी उसे एक ग्वाला दिखाई दिया। उसने ग्वाले से पूछा-'क्या तुम पृथ्वीपुर नगर का रास्ता जानते हो?' ग्वाले ने कहा-"हाँ, आपको कहाँ जाना है ?"
उसने कहा-"अपने श्वसुर के गृह"। "तो मुझे भोजन खिलाप्रोगे।" श्रेष्ठिपुत्र ने कहा-"जरूर। बढ़िया से बढ़िया भोजन खिलाऊंगा।" ____ "क्या मुझे गुड़ की राब खिलायोगे?" श्रेष्ठिपुत्र ने हामी भर दी। वह ग्वाला श्रेष्ठिपुत्र के साथ चल पड़ा। वह उस मार्ग से परिचित था, अतः श्रेष्ठिपुत्र को उसके श्वसुर-गृह तक पहुँचाने में उसे कोई तकलीफ नहीं हुई।
श्वसुर-गृह में पहुँचते ही श्वसुर आदि ने अपने जामाता का स्वागत किया। भोजन का समय हो चुका था, अतः तत्काल श्वसुर ने अपने जामाता के स्वागत में विविध पकवान तैयार करवाए। भोजन का समय होते ही जामाता भोजन के लिए बैठा। उस ग्वाले को भी पकवान परोसे गए। श्रेष्ठिपुत्र का साला ज्योंही भोजन का थाल लेकर अन्दर पहुंचा, त्योंही ग्वाले ने आँखें
शान्त सुधारस विवेचन-१४६