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पड़ोसी से भी अधिक प्रेम स्वजन-कुटुम्ब से होगा। कुटुम्ब में भी अधिक प्रेम पुत्र आदि पर होगा और पुत्र से अधिक प्रेम पत्नी पर होगा और पत्नी से अधिक प्रेम स्व शरीर पर होगा।
इस प्रकार ममता के अनेक क्षेत्र हैं। पूज्य उपाध्यायजी म. फरमाते हैं कि इस प्रकार नाना प्रकार की ममताओं के वशीभूत होकर आत्मा भारी ही बनती है और उस ममता के भार से आत्मा की दुर्गति ही होती है। अतः ममत्व त्याग के लिए प्रयत्नशील बनना चाहिये।
स्व - स्वभावं मद्यमुदितो, '
भुवि विलुप्य विचेष्टते । दृश्यतां परभावघटनात् ,
पतति विलुठति जम्भते ॥ विनय० ५३ ॥ अर्थ-शराब के नशे में पागल बना व्यक्ति अपने मूल स्वभाव का त्याग कर पृथ्वी पर आलोटने की व्यर्थ चेष्टा करता है, इसी प्रकार पर-भाव को घटना से जीवात्मा नीचे गिरता है, पालोटता है और जम्भाई लेता है ।। ५३ ।।
विवेचन परभाव रमरणता की शराब
शराबी की दशा से आप शायद ही अपरिचित होंगे? शराब के नशे में व्यक्ति अपना भान खो देता है। वह अपनी गुप्त बात भी प्रकट कर देता है। माँ के साथ पत्नी जैसा और
शान्त सुधारस विवेचन-१३६