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सोने के ढेर करने वाला मोहम्मद गजनवी जीवन के अन्तिम दिनों में पागल हो गया था और कुत्ते की मौत मरा था।
'इस संसार में मेरा कोई नहीं है' इस सत्य को जीवन में पचा लिया जाय तो व्यक्ति अनेक पापों से बच सकता है। दुनिया में अधिकांशतः पाप क्षणिक पदार्थों की प्राप्ति के लिए ही होते हैं। परन्तु इस सत्य को जान लेंगे तो इस प्रकार के अनर्थदंड के पापों से जीवात्मा आसानी से बच सकेगा।
एक उत्पद्यते तनुमा
नेक एव विपद्यते । एक एव हि कर्म चिनुते ,
स एककः फलमश्नुते ॥ विनय० ५१ ॥ अर्थ-(इस संसार में) जीवात्मा अकेला ही उत्पन्न होता है और अकेला ही मरता है, वह अकेला ही कर्मों का संग्रह करता है और वह अकेला ही उनके फल को भोगता है ।। ५१ ।।
विवेचन सुख-दुःख का कर्ता व भोक्ता आत्मा ही है
इस संसार में जीव अकेला ही पाया है और अकेला ही जाएगा। हाँ, व्यर्थ के सम्बन्धों की कल्पना कर आज तक इस जीवात्मा ने जो शोक के आँसू बहाए हैं, उनको इकट्ठा किया जाय तो उसके आगे लवण-समुद्र भी एक छोटा तालाब सा प्रतीत होगा। जीवात्मा ने अपनी मृत्यु से जिन स्वजनों को
शान्त सुधारस विवेचन-१३५