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विवेचन
संसार के सम्बन्ध विचित्रता से भरे हैं
प्रोह ! इस संसार की यह कितनी विचित्रता है कि पुत्र मरकर पिता बन जाता है और वही पिता मरकर पुत्र बन जाता है।
समरादित्य चरित्र में सिंह और आनन्द के भव में जो पिता-पुत्र थे, वे ही कुछ भवों के बाद पुनः पुत्र-माँ के रूप में जन्म लेते हैं।
कुबेरसेना की घटना से शायद आप परिचित ही होंगे। एक ही भव में एक ही व्यक्ति से भिन्न-भिन्न छह-छह सम्बन्ध हो जाते हैं। वह घटना इस प्रकार है• मथुरानगरी में कुबेरसेना नाम की एक वेश्या रहती थी। एक बार उस वेश्या ने पुत्र-पुत्री रूपी युगल को जन्म दिया। वेश्या के मालिक ने सोचा-“यदि यह अपनी सन्तान का लालनपालन करेगी तो मुझे इससे आय कम होगी।" अतः उसने कुबेरसेना को कहा-"तू अपनी दोनों सन्तानों को पेटी में बन्द कर, उन्हें नदी में डाल दे।" वेश्या कुबेरसेना ने वह प्राज्ञा स्वीकार को और अपनी दोनों सन्तानों के दाहिने हाथ की अंगुली में एक-एक अँगूठी पहना दी। पुत्र की अँगूठी पर नाम था 'कुबेरदत्त' और पुत्री की अंगूठी पर नाम था 'कुबेरदत्ता'। दोनों बच्चों को पेटी में बन्द कर, वह पेटी नदी में बहा दी गई। ___ श्रीपुर नगर की नदी के किनारे दो वणिक घूमने के लिए आए हुए थे। अचानक उनकी नजर नदी में बहती हुई इस पेटी
शान्त सुधारस विवेचन-१.६