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वह सुख के महासागर में डूब जाती है। इस संसार के समस्त सुखी प्राणियों का सुख इकट्ठा किया जाय तो भी वह सुख एक सिद्धात्मा के एक आत्मप्रदेश द्वारा अनुभूत सुख के बराबर भी नहीं है। आत्मसुख के आगे इन्द्र और चक्रवर्ती के सुख भी नगण्य हैं।
इस आत्मसुख की प्राप्ति आत्मा को एकता के भावन से होती है।
एकता के भावन में नमि राजर्षि का दृष्टान्त प्रसिद्ध है, जो निम्नानुसार है
___ वेदना में से विराग की ज्योति प्रगटाने वाले नमिराजा मिथिला के अधिपति थे। सती मदनरेखा के सुपुत्र नमिराजा छह मास से भयंकर वेदना से ग्रस्त थे। अनेक उपचारों के बावजूद भी उनके स्वास्थ्य में लेश भी सुधार नहीं हो रहा था।
समय-समय की बात है, एक बार के अत्यन्त सुखी नमिराजा आज दुःख की आग में तपे जा रहे थे।
राजसिंहासन पर बैठने वाले नमिराजा शय्या पर पड़े-पड़े अपनी वेदना भोग रहे थे।
नमिराजा के देह की रक्षा के लिए सैकड़ों वैद्य प्रयत्नशील थे परन्तु वेदना में थोड़ा भी अन्तर नहीं पड़ रहा था। अन्त में एक उपचार उन्हें लागु पड़ गया। चन्दन के लेप से उन्हें शोतलता का अनुभव होने लगा और नमिराजा की शान्ति से सभी के चेहरे प्रसन्न बन गए। राजरानियाँ आदि सभी महाराजा
शान्त-९
शान्त सुधारस विवेचन-१२६