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करने की प्रतिज्ञा होने से रोहिणेय अपने दोनों कानों में अंगुली डालकर तेजी से भागा। बीच मार्ग में ही एक पैर में काँटा लग जाने से उसे एक कान में से अंगुली निकालनी पड़ी और अफसोस ! प्रभु की वाणी उसे अनचाहे भी सुननी पड़ी। प्रभु देव के स्वरूप का वर्णन कर रहे थे। रोहिणेय प्रभु की वाणी को भूलना चाहता था, किंतु भूल न सका ।....उस वाणी ने उसे मौत से बचा लिया, जब अभयकुमार उसे युक्तिपूर्वक फंसाना चाहता था....प्रभु की उस वारणी से वह अभयकुमार के मायाजाल को समझ गया और अभयकुमार के चंगुल में फंसने से बच गया।
रोहिणेय मौत के मुख में जाने से बच गया....। किन्तु इस घटना ने रोहिणेय का हृदय परिवर्तित कर दिया, उसके रोम-रोम में प्रभु महावीर के प्रति भक्तिभाव जाग उठा और अन्त में उसने अपने आपको प्रभु के चरणों में समर्पित कर दिया।
रोहिणेय डाकू संत-महात्मा बन गया। यह है प्रत्यक्ष प्रभाव प्रभु-वाणी का। ..
. यह जिनवाणी तो संसार को भेदने में समर्थ है। अतः हे प्रिय आत्मन् ! जिनवाणी को आत्मसात् कर, निःश्रेयस् (मोक्ष) को निकट लाने वाले शांत सुधारस का पान कर। ०
शान्त सुधारस विवेचन-११९