________________
पर पड़ी। दोनों मिलकर उस पेटी को नदी किनारे लाए । पेटी को खोलकर देखा तो उसमें से दो बच्चे निकले ।
दोनों वणिक् व्यापारी थे। एक के तीन लड़कियाँ थीं और एक के चार लड़के अतः लड़की वाले वणिक ने लड़का ले लिया और लड़के वाले वणिक ने लड़की ले ली। दोनों की इच्छाएँ पूर्ण हो गई थी, दोनों खुश थे। दोनों ने उनका अपनी सन्तानवत् पालन किया।
धीरे-धीरे कुबेरदत्त और कुबेरदत्ता बड़े हुए। यौवनावस्था में आने के बाद कुबेरदत्ता के पिता को उसके वर की चिन्ता होने लगी। अन्त में उस वणिक् ने सोचा 'कुबेरदत्त' के सिवाय इसके लिए सुयोग्य वर और कौन हो सकता है, अतः उसने अपनी पुत्री का विवाह कुबेरदत्त से करा दिया। दोनों का दाम्पत्य जीवन आनन्द से बीत रहा था। एक दिन वे दोनों चौपड़ खेल रहे थे, अचानक कुबेरदत्त की अंगुली से एक अंगूठी निकल पड़ी। कुबेरदत्ता ने नाम पढ़ा-और अपनी अँगूठी से तुलना की, दोनों समान प्रतीत हुईं। दोनों की आकृति-प्रकृति समान थी। अतः कुबेरदत्ता को कुछ लज्जा आ गई। उसने पति से अपने वास्तविक माता-पिता को जानने का आग्रह किया।
कुबेरदत्त ने अपने पिता से कहा--"पिताजी ! सत्य कहो, मेरे वास्तविक माता-पिता कौन हैं ?"
उस वणिक् ने कुबेरदत्त को सत्य हकीकत कह दी।
इस सत्य की जानकारो से कुबेरदत्ता लज्जाशील बन गई, उसे बड़ा आघात लगा और अन्त में उसने दीक्षा अंगीकार कर ली।
कुबेरदत्त घर पर ही रहा। व्यापारादि करने लगा। उसने
शान्त सुधारस विवेचन-११०