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देवताओं को भी अपने वश में कर ले तथा देह को पुष्ट करने वाले रसायनों का सेवन करे तो भी मृत्यु उसे नहीं छोड़ती है ।। २७ ।।
विवेचन
मृत्यु से बचना शक्य नहीं है
सभी जीवात्मा जीवन चाहते हैं, मृत्यु किसी को पसन्द नहीं, फिर भी मरना पड़ता है। सर्व जीवों पर मृत्यु का प्रहार सतत चल रहा है। एकमात्र मुक्तात्माओं पर ही उसका प्रहार निष्फल जाता है।
इस मृत्यु के जाल से बचने के लिए मनुष्य नाना प्रकार के प्रयत्न करता है और अन्तिम दम तक जीवन को बचाने के लिए मृत्यु से संघर्ष करता है। वह अनेक प्रकार की विद्याओं को सिद्ध करता है, वह नाना प्रकार के मंत्रों का जाप करता है, नाना प्रकार की औषधियों का सेवन करता है और नाना देवी-देवताओं को अपने अधीन करने के लिए साधनाएँ करता है। अपने शरीर को पुष्ट करने के लिए वह नाना प्रकार के रसायन-चूर्णों का सेवन करता है। उसके सारे प्रयत्न जीवन के रक्षण और मृत्यु से संरक्षण के लिए होते हैं। परन्तु अफसोस ! मृत्यु के आगे उसके सब प्रयत्न निष्फल हो जाते हैं। वह कीमती दवारों के लिए लाखों रु. खर्च कर देता है, दूर-दूर से डॉक्टर व वैद्यों को बुलाता है, परन्तु मृत्यू के आगे उसका एक भी प्रयत्न सिद्ध नहीं हो पाता है। वह लाचार बन जाता है। दुनिया का कोई भी पदार्थ उसे मृत्यु से बचा नहीं पाता है ।
शान्त सुधारस विवेचन-७३