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सृजतीमसितशिरोरुहललितं, मनुजशिरः सितपलितं । को विदधानां भूधनमरसं, प्रभवति रोर्बु जरसम् ॥ २६ ॥
अर्थ-मनुष्य के मस्तक पर अत्यन्त सुन्दर दिखने वाले काले बालों को जरावस्था सफेद बना देती है और शरीर को रसहीन (नीरस) बना देती है, ऐसी जरावस्था को रोकने में कौन समर्थ है ? ।। २६ ।।
विवेचन अप्रिय वृद्धावस्था ___ सभी को यौवनावस्था प्रिय है, वृद्धावस्था किसी को प्रिय नहीं है। मस्तक के श्याम केश सुन्दर लगते हैं, किन्तु सफेद केश किसी को प्रिय नहीं हैं। वृद्धावस्था के आगमन के साथ ही मनुष्य के काले केश सफेद हो जाते हैं और उसका शरीर निस्तेज हो जाता है। यौवन की चाल भी बदल जाती है और व्यक्ति बड़ी कठिनाई से लकड़ी के सहारे धीरे-धीरे एक-एक कदम चलता है। दाँत गिर पड़ते हैं, लेकिन स्वाद जाता नहीं है। खाने की इच्छाएँ बनी रहती हैं।
वृद्धावस्था शरीर को जीर्ण-शीर्ण बना देती है। जीवन नीरस बन जाता है।
मनुष्य ऐसी जरावस्था का शिकार बनना नहीं चाहता है, परन्तु उस जरावस्था को रोकने में कौन समर्थ है ? अर्थात् कोई समर्थ नहीं है।
शान्त सुधारस विवेचन-७५