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सुख में भागीदार बनने के लिए सब तैयार हैं, किन्तु दुःख में भागोदार बनने के लिए कोई भी तैयार नहीं। सभी सुख के साथी हैं, दुःख पाने पर दूर-सुदूर ही भागने वाले हैं।
अनाथी मुनि ने अपनी अनाथता का साक्षात् अनुभव किया और यह संकल्प लिया कि मेरी बीमारी ठीक हो जाए तो मैं संसार का त्याग कर दीक्षा अंगीकार कर लूगा। दूसरे ही दिन वे स्वस्थ हो जाते हैं और अपने संकल्पानुसार संसार का त्याग कर दीक्षा अंगीकार कर लेते हैं । शरणमेकमनुसर चतुरङ्ग, परिहर ममतासङ्गम् । विनय ! रचय शिवसौख्यनिधानं, शान्तसुधारसपानम् ॥३१॥
अर्थ-हे विनय ! चार अंग स्वरूप (अरिहंतादिक का) शरण स्वीकार कर। ममता के संग का त्याग कर और शिवसुख के निधानभूत शांतसुधारस का पान कर ।। ३१ ।।
विवेचन सच्चे शरण्य कौन ?
संसार में जीवात्मा की सर्वत्र अशरण दशा है। उसी अशरण दशा से मुक्त होने के लिए पूज्य उपाध्यायजी महाराज तीन उपाय बतला रहे हैं
(१) चतुःशरण गमन । (२) ममता का त्याग । (३) शान्त सुधारस का पान ।
शान्त सुधारस विवेचन-७७