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सेठजी का अधिकांश व्यापार विदेशों में होता था। अनेक बार उन्हें समुद्री यात्राएँ करनी पड़ती थीं।
एक बार उनके किसी मित्र ने कहा- “सेठजी ! आपको अनेक बार समुद्री यात्राएँ करनी पड़ती हैं। समुद्री यात्रा कभीकभी अत्यन्त आपत्ति का कारण बन सकती है। समुद्र में कई बार तूफान भी आते हैं, अतः अपने जीवन की सुरक्षा के लिए कम से कम आप तैरना तो सीख लीजिए।"
सेठ ने कहा- 'तुम्हारी बात तो ठीक है, किन्तु मुझे फुर्सत कहाँ है कि मैं तैरना सोख सकू?".
मित्र ने कहा- "फुर्सत तो नहीं है, किन्तु जीवन तो बचाना होगा न ?”
सेठ ने कहा-"कोई दूसरा उपाय बता दो।"
मित्र ने कहा--"अच्छा ! तो अपनी प्रत्येक समुद्र-यात्रा में अपने साथ खाली डिब्बे ले लिया करो और जब जहाज टूट जाय तो उनके सहारे समुद्र में कूद पड़ना जिससे आप बच सकोगे।"
सेठ ने कहा- 'यह अच्छी बात है।"
और सेठजी अपनी प्रत्येक यात्रा में अपने साथ खाली डिब्बे भी रखने लगे।
एक बार सेठजी विदेश से समुद्री यान के द्वारा लौट रहे थे। मध्य मार्ग में ही समुद्र में तूफान आया और जहाज डगमगाने लगा।
शान्त सुधारस विवेचन-८५