________________
इस प्रकार निगोद, नरक व पंचेन्द्रिय तिर्यंच के दुःखों का विचार किया। तो क्या मानव इन दुःखों से मुक्त है ?
नहीं। मानव भी दुःख की आग में सतत ही जल रहा है ।
मानव को 'मानव' के रूप में जन्म लेने के लिए भी तो नौ-नौ मास की भयंकर गर्भावास पीड़ा सहन करनी पड़ती है।
__थोड़ी सी दुर्गंध, थोड़ी सी प्रतिकूल हवा से आकुल-व्याकुल बन जाने वाला अहंकारी मानव यह क्यों भूल जाता है कि उसने इस जन्म को पाने के लिए नौ मास तक अत्यन्त दुर्गन्धयुक्त गर्भ के कारावास की सजा सहन की है।
शास्त्र में कहा है कि कोई दुष्ट देव अपने शरीर के ३३ करोड़ रोंगटों में एक साथ लोहे की तपी हुई सुइयाँ भोंके, उससे आठ गुनी पीड़ा गर्भावस्था में होती है और उससे अनन्तगुनी पीड़ा जन्म के समय होती है।
__ क्या माँ के गर्भ में वातानुकूलन था? क्या माँ के गर्भ में सुगन्धित फूलों की महक थी? क्या माँ के गर्भ में मखमल के गद्दे थे ? कैसी भयंकर सजा थी वह ? फिर भी अभिमानी मानव उस भूतकालीन इतिहास को भूल जाता है और छोटी-छोटी बातों के लिए अहंकार-ग्रस्त हो जाता है ।
जन्म के साथ भी मानव प्राणी की क्या हालत है ?
क्या जन्मप्राप्त मानव-शिशु और पशु के बच्चे में विशेष अन्तर होता है ?
शान्त सुधारस विवेचन-६३