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परन्तु मोह से मूढ़ बनी आत्मा की तो बात ही कुछ और है। जीवन-यापन के लिए पर्याप्त धन होते हुए भी वह 'हाय' 'हाय' करता रहेगा और अन्याय-अनीति से किसी भी तरह धन के संग्रह का प्रयास जारी रखेगा।
स्वजन, पुत्र, परिवार की तीव्र प्रासक्ति के परिणामस्वरूप जीवात्मा को क्या मिलता है ? एकमात्र तिरस्कार व अपमान के कटु अनुभव ही।
श्रेणिक महाराजा के हृदय में अपनो बाल सन्तान कोणिक के प्रति कितना अधिक प्रेम था? लेकिन उसे बदले में क्या मिला? एकमात्र भयंकर कारावास की सजा ही न !
समरादित्य-चरित्र में पिता सिंह महाराजा और पुत्र आनन्दकुमार की बात आती है। आनन्द के जन्म के बाद उसकी माँ उसे मार डालना चाहती थी, परन्तु सिंह महाराजा ने उसे बचा दिया था। तत्पश्चात् पिता ने पुत्र को प्रेम दिया....स्नेह दिया और अन्त में राज्य देने के लिए तैयार हो गया। परन्तु पुत्र ने बदले में क्या दिया ? अति भयंकर कारावास की सजा और अन्त में मौत ही न !
इस संसार में समस्त रिश्ते-नाते स्वार्थ से भरे हुए हैं। पुत्र भी पिता को तभी तक प्रेम करता है, जब तक उसकी शादी न हो जाय अथवा उसे पिता से धन पाने की आशा है। ज्योंही उसको यह आशा टूट जाती है, त्योंही उसका प्रेम समाप्त हो जाता है।
जब तक पिता युवान होते हैं, तब तक उसकी सन्तान भी उससे
शान्त सुधारस विवेचन-१०३