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पूज्य उमास्वातिजी महाराज ने शान्त रस से भरपूर 'प्रशमरति' ग्रन्थ की रचना की है। उस ग्रन्थ में उन्होंने लिखा है कि
प्रशमितवेदकषायस्य, हास्यरत्यरतिशोकनिभृतस्य । भयकुत्सानिरभिभवस्य, यत्सुखं तत्कुतोऽन्येषाम् ॥'
अर्थात् जिसने वेद और कषाय के उदय को उपशान्त कर दिया है और हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा आदि का पराभव कर दिया है, वह आत्मा जिस सुख का अनुभव करती है, वह सुख अन्य के लिए कहाँ है ? .
क्रोध-मान-माया और लोभ इन चार कषायों के शमन से आत्मा शान्त बनती है। पाँच इन्द्रियों के अनुकूल विषयों के परित्याग से प्रात्मा शान्ति के महासागर में अवगाहन करती है।
कितना सुन्दर और सचोट उपाय बतला दिया है पूज्य उपाध्यायजी महाराज ने । ____ रोग तो बतला देवे किन्तु इलाज न करे तो वह डॉक्टर प्रशंसनीय नहीं बनता है, किन्तु रोग की पहचान के बाद जो रोगमुक्ति का उपाय भी बतलाता है, वही डॉक्टर आदरणीय बनता है।
पूज्य उपाध्यायजी महाराज मृत्यु का रोग बतलाकर उससे
१. प्रशमरति गाथा १२६ ।
शान्त सुधारस विवेचन-८०