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उद्यत उग्ररुजा जनकायः, कः स्यात्तत्र सहायः । एकोऽनुभवति विधुरुपरागं, विभजति कोऽपि न भागम् ॥३०॥
अर्थ-मानव देह जब तीव्र व्याधियों से ग्रस्त बन जाता है, तब उसका सहायक कौन होता है ? ग्रहण की पीड़ा चन्द्रमा अकेला भोगता है, उस समय उसमें कोई भाग नहीं लेता है ।। ३० ॥
विवेचन
रोग सहित काया __ आकाश में चन्द्रमा के साथ अनेक तारागण भी होते हैं, परन्तु जब चन्द्रग्रहण होता है, तब उससे चन्द्र ही ग्रसित होता है अन्य तारागण नहीं। इसी प्रकार धन-वैभव आदि की समृद्धि होने पर भी जब शरीर रोगों से घिर जाता है, तब स्वयं को ही पीड़ा भोगनी पड़ती है, उस पीड़ा में कोई सहायक नहीं हो पाता है। ___ पाप समृद्ध हैं तो आपकी बीमारी के निवारणार्थ बड़ी-बड़ी फीस लेने वाले डॉक्टर बुलाए जा सकते हैं, किन्तु दर्द की पीड़ा तो स्वयं को ही भोगनी पड़ती है। डॉक्टर या स्वजन उस दर्द में भागीदार नहीं बन सकते हैं।
अनाथी मुनि गृहस्थ अवस्था में अत्यन्त ही समृद्ध थे। किसी भी प्रकार के धन-वैभव-स्वजन-परिवार की उन्हें कमी नहीं थी, किन्तु जब उनके शरीर में वेदना पैदा हुई, तब उस वेदना को बाँटने वाला कोई नहीं था। संसार का यह स्वभाव है।
शान्त सुधारस विवेचन-७६