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वपुषि चिरं निरुणद्धि समीरं, पतति जलधिपरतीरम् । शिरसि गिरेरधिरोहति तरसा, तदपि स जीर्यति जरसा ॥२८॥
अर्थ-शरीर में लम्बे समय तक पवन को रोक दे, महासमुद्र के अन्य तट पर जाकर पड़ाव डाल दे, अथवा शोघ्र ही ऊँचे पर्वत के ऊपर भी चढ़ जाय तो भी मनुष्य जरा से अवश्य जीरण होता है ।। २८ ।।
विवेचन वृद्धावस्था भयंकर है
मृत्यु के बाद दूसरा भय-स्थान है-जरावस्था का। वृद्धावस्था को रोकने के लिए मनुष्य कितना ही प्रयास करे किन्तु उसके समस्त प्रयत्न निरर्थक ही जाते हैं।
व्यायाम आदि के द्वारा शरीर को कितना ही स्वस्थ रखने का प्रयत्न किया जाय, कितना हो प्राणायाम किया जाय, फिर भी वृद्धावस्था रुकने वाली नहीं है। समुद्र के किनारे जाकर बैठे अथवा पर्वत के शिखर पर चढ़ जायें, फिर भी वृद्धावस्था रुकने वाली नहीं है और उसके आगमन के साथ ही शरीर कमजोर होने लगता है।
उत्पत्ति के साथ विनाश जुड़ा हुआ ही है। जन्म के साथ ही देह की जीर्णता प्रारम्भ हो जाती है। अंग्रेजी में ठीक ही कहते हैं-I am Three years old, I am Fifty years old. मैं तीन वर्ष का बूढ़ा हूँ....मैं पचास वर्ष का बूढ़ा हूँ....इससे स्पष्ट है कि बुढ़ापा तो सभी के जीवन के साथ जुड़ा हुआ है।
शान्त सुधारस विवेचन-७४