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विवेचन
यमराज का ताण्डव नृत्य
__ मृत्यु से बचने के लिए मनुष्य कदाचित् वज्र का महल खड़ा कर दे और उसमें घुस जाय, फिर भी वह बिचारा (रंक ?) मृत्यु से बच नहीं सकता है ।
युद्ध-भूमि में तिनके को मुंह में रखना, हार के स्वीकार की निशानी है। तृण ग्रहण करने के बाद भयंकर शत्रु भी उस पर कोई प्रहार नहीं करता है। अतः कदाचित् मृत्यु से अपनी हार-स्वीकृति के लिए कोई व्यक्ति मुह में तृण ले लेवे तो भी वह मृत्यु से बच नहीं सकता है ।
यमराज तो जीवों पर सतत प्रहार करता ही जा रहा है । जीवों के जीवन की समाप्ति में ही वह आनन्द मानता है और उसमें उसे लेश भी थकावट का अनुभव नहीं होता है। _मृत्यु से बचने के लिए प्राणी उससे दया की भीख मांगे तो भी वह उस पर लेश भी दया करने के लिए तैयार नहीं है, वह तो अत्यन्त ही क्रूर है। निर्दयता का ताण्डव-नृत्य करने में उसे किसी प्रकार की शर्म नहीं है। वह छोटे-बड़े का, धनी-निर्धन का कोई भेद नहीं करता है।
विद्यामन्त्रमहौषधिसेवां, सृजतु वशीकृतदेवाम् । रसतु रसायनमुपचयकरणं, तदपि न मुञ्चति मरणम् ॥२७॥
अर्थ-कोई विद्या, मंत्र और महा औषधियों का सेवन करे,
शान्त सुधारस विवेचन-७२