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तुरगरथेभनरावृतिकलितं, दधतं बलमस्खलितम् । हरति यमो नरपतिमपि दीनं, मैनिक इव लघुमीनम् ॥ २५ ॥
अर्थ-जिस प्रकार एक छोटे मत्स्य को बड़ा मत्स्य निगल जाता है, उसी प्रकार घोड़े, रथ, हाथी तथा पैदल सैन्य से अस्खलित बल को धारण करने वाले और अत्यन्त दीन बने राजा को भी यमराज उठा ले जाता है ।। २५ ।।
विवेचन सैन्य से भी रक्षरण असंभव है
याद आ जाती है कवि की ये पंक्तियाँजिनके महलों में, हजारों रंग के फानूस जलते थे। उनकी कब्रों का प्राज, निशां भी नहीं।
हजारों सम्राट् इसी पृथ्वीतल के साम्राज्य को भोगकर चल बसे, किन्तु आज उन्हें कोई याद नहीं करता है। बड़े से बड़ा सम्राट भी मृत्यु के बाद धीरे-धीरे विस्मृत होता जाता है।
___ इस संसार में मत्स्यगलागल न्याय है। समुद्र में छोटी मछली को बड़ी मछली खा जाती है। बस, इसी प्रकार यमराज भी इस संसार में रहे प्राणियों को ग्रास करता जाता है। कोई उसके चंगुल से बच नहीं पाता है।
छह खंड के अधिपति चक्रवर्ती भी इस पृथ्वीतल पर पाए। लाखों-करोड़ों का उनका सैन्यबल था। एक संकेत करते ही लाखों लोग उनकी आज्ञा का पालन करते थे। परन्तु
शान्त सुधारस विवेचन-७०