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अमर ने कहा--"आपकी बात कुछ अंश में सत्य भले हो, किन्तु सम्पूर्ण सत्य तो नहों। अोह ! मुझ से मेरी माँ को, मेरी पत्नी को कितना प्रेम है, इसको मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता है।"
महात्मा ने सोचा--"अाखिर इसे सत्य को अनुभूति करानी पड़ेगो।" वे बोले--"कल पुनः मुझ से मिलना।"
दूसरे दिन पुनः अमर पाया। महात्मा उसे एक विशाल सरोवर पर ले गए, जिसमें विविध पक्षी क्रीड़ा कर रहे थे। मनुष्य भी उसमें स्नान कर रहे थे।
फिर महात्मा उसे एक शुष्क सरोवर पर ले गए, जहाँ न कोई पक्षी था और न कोई मनुष्य। सब कुछ श्मशान की भाँति शून्य था।
महात्मा ने कहा--"देख लिया दोनों तालाबों के बीच अन्तर। तालाब में पानी है तो सब का आगमन और शुष्क पड़ा है तो निर्जन । ऐसा ही तो संसार है।"
अपनी बात को स्पष्ट करते हुए महात्मा ने आगे कहा-"फिर भी तुम्हें विश्वास न हो तो आज तुम्हें परिवार के प्रेम की परीक्षा कराना चाहता हूँ। आज तुम ज्योंही घर के निकट पहुँचो, बेहोश होकर नीचे गिर पड़ना। सबके प्रयत्न के बावजूद भी मत उठना । बेहोश की भाँति पड़े रहना, संध्या समय मैं आऊंगा, तब तुम्हें सत्यानुभूति करा दूंगा।" ____महात्मा के निर्देशानुसार अमर ज्योंही अपने घर के निकट पहुँचा, भूमि पर गिर पड़ा। अमर के गिरते ही चारों ओर से
शान्त-५
शान्त सुधारस विवेचन-६५