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महात्मा ने कहा-"ठीक करना तो आसान बात है, किन्तु हम दुनिया से विरक्त हैं, हम दुनियादारी में गिर पड़ेंगे तो प्रभु का ध्यान....।"
सेठ ने विनती करते हुए कहा -"कृपासागर ! इतनी मेहर कर दीजिए। आपके इस उपकार को जिन्दगी भर नहीं भूलूगा।"
. महात्मा ने अपनी सम्मति दे दी। सेठजी महात्मा को अमर के पास ले आए। महात्मा ने कहा-"सभी दूर रहिए । मैं अभी मंत्र का जाप करता हूँ, सब अच्छा हो जाएगा। अभी कटोरी में कुछ पानी ले आयो।"
तत्काल पानी लाकर महात्मा को सौंप दिया गया। महात्मा ने बीच में पर्दा करा दिया और मंत्र जाप करने लगे। थोड़ी ही देर बाद वे पर्दे से बाहर निकल आए और सभी परिवारजनों को इकट्ठा कर बोले-"मैं इसकी असाध्य बीमारी को मंत्रशक्ति से खींचकर इस कटोरे में ले आया हूँ, अतः इस कटोरे के पानी को कोई पी जाय तो यह तत्काल ठीक हो सकता है, परन्तु खेद है कि जो पीएगा वह इस संसार से चिर-विदाई ले लेगा।"
___ महात्मा की वाणी सुनते ही सभी के मुंह फीके हो गए। किसी के चेहरे पर उस कटोरे के पानी को पीने के लिए उत्साह नहीं था, सभी एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। माँ, पत्नी पानी पी ले ऐसी आशा कर रही थी और पत्नी, उसकी माँ पानी पी ले, ऐसी आशा। महात्मा ने वह कटोरा सभी के पास घुमाया, किन्तु सभी ने पानी पीने से मना कर दिया।
शान्त सुधारस विवेचन-६७