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उसने कहा-"नहीं।"
राजा ने कहा- "बस। अपनी आँख के सामने मृत्यु को देखते ही तुम्हारे सब अानन्द समाप्त हो गए और तुम्हें उनमें कोई प्रासक्ति नहीं रहो, इसी प्रकार मैं भी मृत्यु को अपनी आँखों के सामने सतत रखता हूँ, अतः बाहर से वैभव-विलास को भोगते हुए भी मृत्यु के भय के कारण मुझे कोई आनन्द नहीं प्राता है।
पथिक की शंका का समाधान हो गया। पूज्य उपाध्यायजी महाराज यही फरमाते हैं कि मृत्यु के आगमन के साथ मानव का प्रताप समाप्त हो जाता है। उसका तेज उड़ जाता है। उसको मृत्यु से बचाने वाला कोई नहीं होता है। बन्धुजन भी मात्र नाम का आश्वासन देते हैं और वे भी धन-सम्पत्ति बाँटने में लग जाते हैं।
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Prayer
Lead me from falsehood to reality. Lead me from darkness to light. Lead me from death to immortality.
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शान्त सुधारस विवेचन-६१