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वह धीरे-धीरे चल रहा था, किंतु उसके पैर पीछे हटने की कोशिश में थे।
थोड़ी ही देर में वह भोजनखण्ड में जा पहुंचा।
पथिक के भोजन की आज विशेष तैयारियाँ थीं। विविध जाति के पकवान-मिष्टान्न-साग-सब्जी, नमकीन आदि बनाए गए थे। - सोने के थाल में उसे भोजन परोसा गया। महारानी स्वयं उसके एक अोर पंखा झलने लगी। मंत्रीश्वर स्वयं भोजन की परोसकारी करने लगे।
किन्तु आज उसके भोजन का रंग उड़ चुका था। न मिष्टान्न में उसे प्रानन्द था....न नमकीन में ।
___ न उसे गुलाबजामुन के स्वाद का पता था और न ही दहीबड़े का। कुछ खाया....न खाया और वह उठ गया । उसका दिमाग चक्कर खा रहा था। आँखों के सामने मृत्यु झूम रही थी। कोई प्रानन्द नहीं ।
भोजन के बाद वह आरामखण्ड में गया किन्तु आज पाराम हराम बन चुका था, बिस्तर पर लेटा रहा, किन्तु नींद का नाम नहीं।
आखिर दोपहर का समय हुआ और महाराजा ने उसके आरामखण्ड में प्रवेश किया।
तुरन्त ही महाराजा ने कहा-"क्यों ? आनन्द में हो न ?
शान्त सुधारस विवेचन-५९