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प्रवेश किया और घंटे भर तक आराम किया। राजा को ओर से राजमहल के प्रत्येक खण्ड में उसे जाने-माने की छूट थी। राजमहल की विविध कलाकृतियों से उसका मन मयूर नाच उठता था। राजमहल के उद्यान में वह स्वर्गीय-सुख की कल्पना करता था। ___ इस प्रकार प्रानन्द-कल्लोल में चार दिन व्यतीत हो गए। पाँचवें दिन दोपहर को राजा से उत्तर की प्राशा थी। ___ पाँचवें दिन राजा ने उसके शाही स्वागत व शाही भोजन की व्यवस्था कर दी। किन्तु भोजन समय के पूर्व राजा ने एक मंत्री के द्वारा उसे एक सन्देश पहुँचाया कि कल के किसी अपराध के कारण आज संध्या समय तुम्हें फाँसी के तख्ते पर लटका दिया जाएगा। फाँसी-मृत्यु की बात सुनते ही उसके होश उड़ गए। उसी समय चार कर्मचारी उसे भोजन का आमंत्रण देने आ पहुँचे।
पथिक का मन फाँसी की सजा सुनते ही उद्विग्न बन चुका था, अत: आज उसे भोजन के आमंत्रण में कोई प्रसन्नता नहीं थी।
बे-मन उसने राजभवन में प्रवेश किया। प्रवेश द्वार पर दूध से उसके पाद-प्रक्षालन के लिए नौकर तैयार खड़ा था।
आज महाराजा की ओर से दूध से उसका पाद-प्रक्षालन किया गया, परन्तु आज का यह दूध से प्रक्षालन आग से भी अधिक गर्म लग रहा था। पाद-प्रक्षालन के बाद भी उसके चेहरे पर कोई प्रसन्नता नहीं थी। उदासीनता ने उसके चेहरे को घेर लिया था।
शान्त सुधारस विवेचन-५८