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इसका जवाब पूज्य उपाध्यायजी म. देते हैं कि इस संसार के सभी पदार्थ क्षणविनाशी होते हुए भी श्रात्मा नित्य है । वह ज्ञानमय है, वह अक्षय सुख का भण्डार है । उस सुख का कितना ही भोग किया जाय, वह कभी क्षय होने वाला नहीं है ।
आत्मा सच्चिदानंद है ।
श्रात्मा का अस्तित्व शाश्वत है ।
श्रात्मा का ज्ञान शाश्वत है |
आत्मा का आनन्द शाश्वत है ।
अतः आत्मा के स्वरूप- सागर में जो डूब गया, उसने अक्षयसुख को प्राप्त कर लिया ।
संसार में दुःख तभी तक हैं, जब तक आत्मस्वरूप में मग्न न बने हैं । श्रात्मस्वरूप में जो मग्न बन गया, उसे दुःख का लेश भी स्पर्श नहीं हो पाता है । वह इस खारे समुद्र में भी शृंगी मत्स्य की भाँति मधुर जल रूप आत्म-सुख का स्वाद लेता रहता है ।
कमल कीचड़ व सरोवर में पैदा होता है, परन्तु उससे सर्वथा लिप्त रहता है । इसी प्रकार से जो व्यक्ति प्रात्मस्वरूप में डूब गया है, वह संसार कीचड़ में रहते हुए भी उससे सर्वथा अलिप्त रहता है ।
उसे पुत्र की मृत्यु नहीं रुला सकती । उसे शारीरिक पीड़ा दुःखी नहीं कर सकती । उसे धन का वियोग संतप्त नहीं
कर सकता ।
शान्त सुधारस विवेचन- ४४