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आत्मा की मस्ती कुछ न्यारी ही है । जिसने आत्मा के चिदानन्द स्वरूप का आस्वादन कर लिया, उसे चक्रवर्ती के सुख भी तुच्छ से प्रतीत होते हैं । उसे भोग सुख भी दुःख रूप ही लगते हैं ।
यहाँ पर पूज्य उपाध्यायजी महाराज शुभ भावना अभिव्यक्त करते हैं
"इस संसार में सज्जन पुरुषों के लिए सदैव प्रशमरस के अमृतपान का महोत्सव हो ।" अर्थात् - सज्जन पुरुष सदा प्रशम भावना में लीन रहें ।
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He who gives up all desires, and moves free from attachment, egoism and thirst for enjoyment, attains peace.
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शान्त सुधारस विवेचन- ४५
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