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से अच्छे-अच्छे को मात देने वाले पुरुषों को भी जब मौत दिखाई देती है, तब वे भी हताश हो जाते हैं और चारों ओर मृत्यु से बचने के लिए डॉक्टर-वैद्य आदि को बुलाने के लिए भागदौड़ कराते हैं, किन्तु कोई भी उन्हें मृत्यु से बचा नहीं पाता है। "
तावदेव मदविभ्रममाली, तावदेव गुरणगौरवशाली । यावदक्षमकृतान्तकटाक्ष-क्षितो विशरणो नरकीटः ॥ २२ ॥
(स्वागतावृत्तम्) अर्थ-- जब तक शरण रहित मनुष्य रूपी कीटक, भयंकर यमराज की दृष्टि में नहीं आता है, तभी तक वह जाति आदि मद के भ्रम में घूमता रहता है और गुण के गौरव में खुश रहता है ।। २२॥
विवेचन मृत्यु अवश्यम्भावी है
गत जन्मों के पुण्य के उदय से उत्तम जाति, उत्तम कुल और समृद्ध परिवार में जन्म हो गया, तो भी यह बुद्धिमान् मानव अभिमान के शिखर पर चढ़ जाता है और घमण्ड करने लगता है कि "हम तो ऊँचे कुल वाले हैं, हमारी जाति तुमसे ऊँची है, तुम तो हीन हो, दूर हटो, यहाँ से ।"
कुछ लक्ष्मी मिल गई तो मानों त्रिभुवन का साम्राज्य मिल गया हो, इस प्रकार गर्व करने लगता है और गरीब व दीन की घोर उपेक्षा ही करता है। कामदेव के समान सुन्दर, आकर्षक रूप मिल गया, तो अभिमान करेगा। दूसरों की अपेक्षा कुछ
शान्त सुधारस विवेचन-५२