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काया ने कहा- "बस करो। मैं तो अधिक से अधिक चिता तक आपके साथ पाऊंगी, उससे आगे नहीं।"
सेठजी अत्यन्त निराश हो गए और उन्हें संसार की अशरणता का भान हो गया।
यही हालत है इस संसार में प्राणियों की।
चक्रवर्ती छह खण्ड के विशाल साम्राज्य को प्राप्त कर उसमें लीन बन जाता है, भोग-विलास में वह डूब जाता है। ६४००० स्त्रियों का वह स्वामी होता है, अनेक मुकुटबद्ध राजा उसके चरणों में नित्य नमस्कार करते हैं। वैभव-विलास की उसे कोई कमो नहीं होती और उस समृद्धि में वह अपने आपको त्रिभुवन का अधिपति मान बैठता है ।
परन्तु एक दिन मृत्यु आकर उसका गला दबोच लेती है और उसकी हालत मरियल कुतिया की भाँति हो जाती है । उसके शरीर का तेज समाप्त हो जाता है और वह अशरण्य बना हुमा चारों ओर शरण की शोध करता है। यह तो हुई चक्रवर्ती की बात । मृत्यु के समय स्वर्ग के सुखों को भोगने वाले देवों की दुर्दशा भा कुछ कम नहीं होती है। छह मास के पूर्व उनके अपने आगामी जन्म का बन्ध हो जाता है और ज्योंही मृत्यु निकट आती हुई दिखाई देती है-उनके होश-हवास उड़ जाते हैं, दिव्य सुख भी उन्हें तृणवत् लगते हैं, दिव्य अप्सराओं के संग में अब उन्हें प्रानन्द नहीं आता है अर्थात् मृत्यु के निकट पाते ही देवों की स्थिति भी दयनीय बन जाती है ।
अपनी बुद्धि के बल से धन-वैभव को पाकर अभिमान करने वाले, बलिष्ठ शरीर को धारण करने वाले और अपनी बुद्धिमत्ता
शान्त सुधारस विवेचन-५१