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खाने लगता है। मिष्टान्न से उसने अपने मुंह को भर लिया है और दूसरा कवल हाथ में लिए तैयार बैठा है। ___बस, इस रूपक के द्वारा पूज्य उपाध्यायजी महाराज जीवन की अनित्यता समझा रहे हैं। वे प्रश्न करते हैं कि उस भूखे व्यक्ति के हाथ में रहे कवल का अस्तित्व कब तक? इसका जवाब है-जब तक मुंह में रहा कवल गले न उतर जाय तब तक । ज्योंही मुख में रहा कवल नीचे उतरा नहीं कि हाथ में रहा कवल मुंह में चला जायेगा।
यही स्थिति है हमारे वर्तमान जीवन की।
यह सम्पूर्ण जगत् त्रस-स्थावर जीवों से ठसाठस भरा हुआ है। यमराज प्रति समय जीवों को ग्रसित करता जा रहा है।
भूखा व्यक्ति तो भोजन से तृप्त हो जाता है और क्षुधा-तृप्ति के बाद भोजन का त्याग कर देता है, परन्तु आश्चर्य है कि यह यमराज निरन्तर जीवों को ग्रास करते हुए भी सदा अतृप्त ही रहता है।
ऐसे यमराज की हथेली पर अपना अस्तित्व है, अतः आप ही सोचिए कि आपका अस्तित्व कितने समय तक रह सकता है ?
मुंह में डाले कवल के नीचे उतरते ही, जैसे हाथ में रहा नया कवल मुंह में डाल दिया जाता है, इसी प्रकार यमराज की हथेली पर रहे हमारा अस्तित्व भी अत्यन्त क्षण-भङ्गुर ही है। हम उस दुष्ट यमराज के हाथों में से कैसे छूट सकते हैं ?
वर्तमान न्यायतन्त्र में तो गुनहगार व्यक्ति भी बच सकता
शान्त सुधारस विवेचन-४२