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अर्थ - पवन से चंचल बनी तरंगों के समान प्रायुष्य अत्यन्त चंचल है | सभी सम्पत्तियाँ, आपत्तियों से जुड़ी हुई हैं । समस्त इन्द्रियों के विषय संध्या के आकाशीय रंग की तरह चंचल हैं । मित्र, स्त्री तथा स्वजन आदि का संगम स्वप्न अथवा इन्द्रजाल के समान है । अतः इस संसार में सज्जन के लिए कौनसी वस्तु श्रालम्बन रूप बन सकती है ?
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विवेचन
सभी पदार्थ / संयोग विनाशी हैं
'अरे ! यह किसकी श्मशान यात्रा निकल रही है ?' दूर खड़े उस व्यक्ति ने अपने मित्र से पूछा ।
'ओह ! तुम्हें पता नहीं, सेठ रामलालजी का एकाकी पुत्र कल रात में हृदयगति रुक जाने से मर गया ।'
" क्या कहा ? सेठ रामलालजी का पुत्र अमरचन्द ! गज़ब हो गया । गत वर्ष ही तो उसका विवाह हुआ था और उसका शरीर भी कितना हृष्ट-पुष्ट था ? कल सुबह ही तो मैंने उसके साथ नाश्ता किया था और उसकी मृत्यु हो गई ।" ऐसे और इस प्रकार के वार्तालाप हमें प्रतिदिन सुनाई देते हैं । ज्ञानियों के वचन कितने सत्य हैं । आयुष्य वायु से युक्त तरंग के समान अत्यन्त चपल है । कितना क्षणिक और नश्वर है यह जीवन !
इस संसार की संपत्तियां भी तो विपत्तियों से भरी हुई हैं । प्रत्येक संपत्ति के पीछे विपत्ति खड़ी है । यदि आपके पास धनसम्पत्ति है तो आपको चोरों का सतत भय रहेगा। चोर का भय, राजकीय भय, ठगे जाने का भय श्रादि-आदि संपत्तिवान् व्यक्ति को ही सतत सताते रहते हैं ।
शान्त सुधारस विवेचन- १६