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परिचय करें? इसका अस्तित्व तो अत्यन्त ही क्षणभंगुर है। यह कब धोखा दे देगा, इसका पता नहीं।
और ओह ! यह क्षणभंगुर देह भी यौवन से कितना उन्मत्त बना हुआ है ? यौवन के आवेग-आवेश में वह अपने क्षणिक अस्तित्व में भी कितने भयंकर पाप-कर्म कर बैठता है।
याद आ जाती है आनन्दघनजी की ये पंक्तियांक्या तन मांजता रे, एक दिन मिट्टी में मिल जाना। मिट्टी में मिल जाना बंदे, खाक में खप जाना ॥ क्या० ॥ कितनी बोधदायी और प्रेरणादायी हैं ये पंक्तियाँ !
और एक पंक्ति दिल-दिमाग में गूज रही है___..."प्रेम से प्रतिपुष्ट किया, तन जलाया जाएगा।'
ओह! इस देह की सौन्दर्य-वृद्धि के लिए कितने-कितने पाप किए; लेकिन आखिर में इसने धोखा ही दिया।
ऐसा यह क्षणभंगुर देह एक बुद्धिमान् पुरुष के महोदय का कारण कैसे बन सकता है ?
आयुर्वायुतरत्तरङ्गतरलं, लग्नापदः सम्पदः , सर्वेऽपीन्द्रियगोचराश्च चटुलाः सन्ध्याभ्ररागादिवत् । मित्रस्त्रीस्वजनादिसङ्गमसुखं. स्वप्नेन्द्रजालोपमं , तत्कि वस्तु भवे भवे-दिह मुदामालम्बनं यत्सताम् ॥१०॥
(शार्दूलविक्रीडितम् )
शान्त सुधारस विवेचन-१८