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अर्थ-अरे! यह यौवन तो कुत्ते की पूंछ के समान अत्यन्त टेढ़ा होते हुए भी शीघ्र नष्ट हो जाने वाला है और जो उस यौवन का गुलाम बन गया, वह तो गुलाम की भाँति मन्द-बुद्धि वाला हो जाता है और ऐसा व्यक्ति किन-किन कटु फलों को प्राप्त नहीं करता है ? ॥ १४ ॥
विवेचन युवावस्था अस्थायी है
यौवन का उन्माद कुछ और ही होता है। किशोरावस्था व बाल्यावस्था में यदि किसी को संसार की अनित्यता प्रादि का पाठ सिखाया जाय तो वह जल्दी स्वीकार कर लेगा, किन्तु यौवन के प्रांगण में डग रखने के बाद संसार की अनित्यता को समझाना अत्यन्त दुष्कर कार्य है । .. यौवन तो वन से भी भयंकर है। वन में भूला व्यक्ति तो शायद घर पर सुरक्षित पहुँच भी सकता है, किन्तु यौवन में भूला व्यक्ति तो सदा के लिए भटक जाता है ।
यौवनावस्था मनुष्य को दीवाना बना देती है। यौवन में एक जोश होता है....एक अहंकार की प्रतिध्वनि सुनाई देती है। जवानी स्वतन्त्र जीवन की ओर प्रेरणा करती है।
अरे! कवियों ने तो यौवन को 'काम' (विषय-वासना) का मित्र कहा है। सामान्यतः यौवन में काम का साम्राज्य छाया हुआ रहता है।
बचपन में धर्माभिमुख आत्मा भी यौवन में प्रवेश पाते ही विषयाभिमुख बन जाती है। इतिहास साक्षी है कि बाल्यवय में
शान्त सुधारस विवेचन-३०