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सुख है, वह सुख भी काल-क्रम से समाप्त हो जाने वाला है। अतः अच्छी तरह से तू विचार कर ले कि इस संसार की वस्तुएँ कितने दिनों तक स्थिर रहने वाली हैं ? ।। १६ ।।
विवेचन दैविक सुख का भी अन्त है
हे मूढ़ पात्मन् ! संसार की अनित्यता का जरा विचार कर। ___ शायद तू यह मानता होगा कि मनुष्य के भोग-सुख तो कदाचित् नष्ट हो सकते हैं, किन्तु दिव्य दैविक सुख में तो परम प्रानन्द है न ?
तेरे प्रश्न का जवाब हाजिर है- नहीं । देवलोक के सुखों में भी कोई माल नहीं है। हाँ ! मनुष्य की अपेक्षा देवताओं का आयुष्य अधिक लंबा है। वे पल्योपम और सागरोपम तक देव भव में रह सकते हैं । एक पल्योपम में असंख्य वर्ष व्यतीत हो जाते हैं। इस प्रकार उनका दीर्घायुष्य अवश्य है।
हाँ, उनका शरीर भी वैक्रियिक होता है। वे अपना मनचाहा रूप बना सकते हैं। वे इच्छित स्थान पर आसानी से जाआ सकते हैं । उनके पास अनेक लब्धियाँ होती हैं। उनके शरीर में किसी प्रकार का मल-मूत्र नहीं होता है। उनकी काया अत्यन्त तेजस्वी होती है । वृद्धावस्था की उन्हें परेशानी नहीं है। न उन्हें भोजन पकाने की आवश्यकता रहती है और न ही खाने की । इच्छामात्र से ही उनकी समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। उनके पास अपरम्पार शक्ति भी होती है। परन्तु यह सब कुछ होते हुए भी पूज्य उपाध्याय जी म. हमें समझा रहे हैं कि उन दिव्य सुखों के
शान्त सुधारस विवेचन-३५