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उसे भी परेशान कर रही हैं। जीवन पर्यंत इन्द्रिय-सुखों के पीछे दौड़ा है, फिर भी उसे तृप्ति व संतोष नहीं है। नवीन फैशन की वस्तु को देखते ही उसे पाने के लिए लालायित हो उठता है ।
'जरा' का पूरे लोक पर साम्राज्य है, वह घनी से धनी व्यक्ति को भी परेशान करती है और व्यक्ति के देह के समस्त सत्त्व को एक साथ पी जाती है ।
फिर भी आश्चर्य है कि जरा से आक्रांत व्यक्ति भी काम की वासना से मुक्त नहीं हो पाता है ।
७०-७५ वर्ष की उम्र में भी पत्नी की मृत्यु के बाद पुन: लग्न करने वाले बूढ़े को हम क्या कहेंगे ? सचमुच, वासना की गुलामी अपने भान को भुलाती है ।
महाराजा शांतनु प्रौढ़वय में पहुँच गए थे, फिर भी नाविक कन्या सत्यवती को देखकर उसके रूप पर मोहित हो गए थे ।
अरे ! आजकल अमेरिका आदि पाश्चात्य देशों में ४०-४० बार लग्न किए हुए स्त्री व पुरुष देखने को मिलते हैं । श्राखिर यह क्या है ? एक मात्र वासना की गुलामी ही न ?
सुखमनुत्तरसुरावधि
यदतिमेदुरम्, कालतस्तदपि कलयति विरामम् ।
सांसारिकम्,
स्थिरतरं भवति चिन्तय निकामम् ।। मूढ० १६ ॥ अर्थ - अनुत्तर विमान तक के देवताओं को जो अत्यन्त
शान्त सुधारस विवेचन- ३४
कतरदितरत्तदा वस्तु