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सर्वदर्शनसंग्रहे
तो प्रमाण हैं ही, नहीं तो धुआं देखकर अग्नि ( धूमध्वज ) के प्रति बुद्धिमान लोगों की प्रवृत्ति कैसे सिद्ध होती ( = अनुमान प्रमाण से ही यह सम्भव है ) ? अथवा, 'नदी के किनारे फल हैं' इस बात को सुनकर फल चाहनेवाले नदी के किनारे क्यों चल पड़ते हैं ? ( = शब्द या आगम- प्रमाण से यह सम्भव है जब कि आप्त या यथार्थवक्ता की बात सुनकर उस पर विश्वास करें ) । [ इस प्रकार इन उदाहरणों से सिद्ध होता है कि अनुमान और शब्द प्रमाण हैं - यह पूर्वपक्षी अर्थात् चार्वाक के विरोधियों का वचन है ] ।
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यह सब केवल मन के राज्य की कल्पना है । अनुमान को प्रमाण माननेवाले लोग, सम्बन्ध बतलानेवाला लिङ्ग ( हेतु, Middle term ) मानते हैं जो व्याप्ति ( Major premise ) और पक्षधर्मता ( Minor premise ) से युक्त रहता है । व्याप्ति का अर्थ है दोनों प्रकार की ( शंकित और निश्चित ) उपाधियों से रहित [ पक्ष और लिङ्ग I ] सम्बन्ध | आँख की तरह यह सम्बन्ध केवल अपनी सत्ता से ही [ अनुमान का ] अङ्ग नहीं बन सकता, प्रत्युत इसके ज्ञान से [ अनुमान संभव है ] । ( कहने का अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार आँख दर्शन-क्रिया का एक सहायक अङ्ग है उसी प्रकार व्याप्ति भी अनुमान का अङ्ग है । किन्तु इन दोनों की सहायता की विधियों में बड़ा अन्तर है । देखने में, स्वयं आँखों के ज्ञान की आवश्यकता नहीं, केवल सत्ता की आवश्यकता है किन्तु अनुमान में सहायता देनेवाली व्याप्ति की सत्ता की आवश्यकता नहीं, उसका ज्ञान होना चाहिए ) । अब व्याप्ति के ज्ञान का कौन-सा उपाय है ? [ इसके बाद प्रत्यक्षादि साधनों के द्वारा व्याप्ति का ज्ञान असम्भव है - यह दिखलाया जायगा । ]
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विशेष - किसी अनुमान ( यदि परार्थानुमान न हो ) में तीन वाक्य होते हैं— व्याप्ति ( Major premise ), पक्षधर्मता ( Minor premise ) तथा निगमन ( Conclusion )
( व्याप्ति ) यत्र यत्र धूमः तत्र तत्र वह्निः, पक्षधर्मता ) पर्वते धूमः,
( निगमन) : पर्वते वह्निः ।
या,
All smoky abjects are fiery ( Major ), The hill is smoky ( Minor ),
.. The hill is fiery ( Conclusion. ),
इनमें 'पर्वत' पक्ष ( Minor term जिसमें साध्य की सत्ता सन्दिग्ध हो ) है, 'वह्नि' साध्य ( Major term सिद्ध करने योग्य ) और 'धूम' हेतु या लिङ्ग (Middle term ) । हेतु वह पद है जो Major और Minor premise में विद्य मान हो किन्तु निगमन ( Conclusion ) में न रहे । व्याप्तिवाक्य ( Major premise ) में हेतु और साध्य का सम्बन्ध होता है तथा निगमन ( Conclusion )