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सरस्वती
[भाग ३६
हो गया। उत्तर से उसने पश्चिम की ओर मुँह कर साधु का भेस बना कर आया तो कोई दूकानदार लिया। इसके बाद फिर मुड़ गया; पश्चिम से दक्षिण का। एक यहूदी बन कर आया तो दूसरा पादरी । को हो गया और दक्षिण से पूर्व को।
एक औरत बुढ़िया बन कर आई, दूसरी जादूगरनी । ___अभी पहला चक्कर पूरा न हुआ था कि लाइफ- सब स्त्री-पुरुष यात्रियों में से किसका रूप, वेष आदि बोट ऊपर से नीचे पहुंच गई। इसमें तीन मल्लाह थे। सर्वोत्तम है, इसका निर्णय करने के लिए तीन एक अधेड़ उम्र का, बाकी दो नौजवान । तीनों खूब निर्णायक नियत किये गये। उन्होंने फैसला दिया कि मजबूत थे। कश्ती के पानी को छूते ही उन्होंने समुद्र साधु का रूप धारण करनेवाला पहले नम्बर पर है। में रस्से फेंके। इनके अतिरिक्त कार्क की कई एक जब ग़पशप और तमाशे की बाते खत्म हो गई तब पेटियाँ भी फेंकी। परन्तु मेहनत बेकार गई; यात्री संगीत प्रारम्भ हुआ। इतने में साधु ने ऊँची आवाज़ का कुछ पता न चला। अब तो उस महिला ने फूट- में कहा-"ठहरो ! शांत हो जाओ!" फूटकर रोना शुरू कर दिया। वहीं दूसरे यात्री खड़े किसी ने पूछा-"क्या बात है ?" थे। नारी के रोने ने सबके दिल दहला दिये। फिर उत्तर मिला-"हम एक बात कहना चाहते हैं।" भी किसी को साहस न हुआ कि उसे तसल्ली देने की "हाँ हाँ, कहिए!" सब ओर से आवाजें आई। कोशिश करे । बेचारी को रोना ही तो एक चारा था। साधु ने अपनी कथा शुरू को-“सीलोन की इसे भी छीन लेना उसके साथ शायद जुल्म होता। राजधानी कोलंबो में मैं पहले डाक्टर था। यह
जहाज तीसरा चक्कर काट चुका था। जहाज पर पिछले जन्म की बात है।" काम करनेवालों में काना-कृसियाँ होने लगी कि अब इस पर सभी यात्री हँस पड़े। यह सीधा चलने लगेगा। तीन चक्कर हो गये है। साधु ने गम्भीरता की मुद्रा बनाते हुए कहाइससे ज्यादा समय देना इसके लिए मुश्किल है। "मेरी पत्नी बहुत अच्छी थी। उसका स्वभाव लेकिन मालूम नहीं, कप्तान के दिल पर उस अबला की बहुत शांत था। लेकिन कभी-कभी वह मुझसे मामूलीअवस्था ने असर किया या किसी अन्य बात ने, सी बात पर भी नाराज हो जाती थी-ख़ासकर उस उसने चौथे चक्कर के लिए हुक्म दे दिया। वह अभा- समय जब वह किसी बात पर अड़ जाती। एक बार गिनी जंगले के साथ सिर पटक रही थी। बाक़ी लोग हम दोनों चीन के शंघाई शहर की ओर जा रहे थे कि भी निराश हो चुके थे। जहाज़ ने आधा चक्कर और एक शाम को खाना खाने के बाद चहलकदमी के काट लिया। इतने में लाइफ़-बोट से कुछ दूर पर एक लिए ऊपर डेक पर आये। अँधेरा हो रहा था, किन्तु सफ़ेद-सी चीज़ तैरती हुई दिखाई दी। उस अधेड़ उम्र रात अभी नहीं पड़ी थी। इतने में हमको समुद्र के के मल्लाह ने बाज की तरह हाथ बढ़ाया और उसे पानी के ऊपर कोई चीज तैरती हुई दिखाई दी। मैंने पकड़ लिया। कश्ती पास आ गई थी। दूसरे मल्लाहा अपने जीवन-साथी से कहा-देखो, वहाँ मछली है । ने भी मदद की।
. तुम्हें भी नजर आती है ?"
____ "मछली ! मुझे तो मछली कहीं नहीं दिखाई [२]
देती। वह तो पक्षी है।" उसने कहा। . अगले दिन दोपहर से ही जहाज़ के डेक को "पक्षी ? हुँ।" मैंने सवाल किया- "अरे पक्षी झंडियों वगैरह से खूब सजाना शुरू कर दिया गया। होता तो अँधेरा हो जाने पर भी क्या वह अपने डिनर (रात्रि-भोजन) के बाद केंसी ड्रेस शो था। घोंसले को वापस न जाता ? क्या इतनी देर तक वह हर एक मुसाफ़िर बहुरूपिया बनकर आया। कोई यहीं उड़ता रहता ?"
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