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इस तरह के पुरस्कार लेने का विधान है।" इतना कहकर वह सहजभाव से अपनी माँ के पास जाकर बैठ गयो।
शान्तला की बात सुनकर चामव्या को गुस्सा चढ़ आया, वह बड़बड़ाने लगी।
चामध्वा की बेटी पद्मला की आँखें चन्दला के हाथ में चमक रही माला पर लगी थीं। अनजाने ही उसके हाथ अपने गले की ओर गये।
युवरानी ने कहा, "यह बात हमें मालूम नहीं थी। इस हार को शान्तला की धरोहर मानकर एक जगह सुरक्षित रखवाने की व्यवस्था कीजिएगा। पुरस्कार लेने की अनुमति उसके गुरु जब उसे दें, यह उसको देंगे।"
माला पेटी में रखी गयी और बोम्मले उसे ले गयी।
"हेग्गड़ती मानिकब्बेजी, अापकी बेटी ने हमारे प्रेमोपहार को लेने से इनकार किया तो आपने कुछ हैरान होकर सिर झुका दिया था। शायद आपने समझा था कि अम्माजी की बात से हम असन्तुष्ट हुए होंगे और इसीलिए सिर नीचा कर लिया। इतनी छोटी उम्र में यह संयम ! इतनी निष्ठा! इस निष्ठा से वह आगे चलकर कितने महत्त्वपूर्ण कार्य को साधेगी-यह हम कैसे जानें 7 ऐसी पुत्री को माँ होकर आपको सिर नीचा करने का कोई कारण ही नहीं। आप लोग आये, हमें बड़ा आनन्द हुआ। फिर आप लोग कब वापसी यात्रा करेंगे-इस बात की सूचना पहले दें तो उसके लिए समुचित व्यवस्था कर देंगे। यह बात केवल हेग्गड़ती माचिकब्बे के लिए ही हमने नहीं कही, यह सबके लिए हमारी सलाह है। बोम्मला! जाकर हल्दी-कुंकुम, पान-फल सबको दो।" युवरानी ने कहा।
मंगल द्रव्य के साथ सब लोग वहां से चली गयीं। चन्दलदेवी अकेली वहाँ रह गयी।
युवरानी बोली, “देखा चन्दलाजी, शान्तला कैसी अच्छी बच्ची है | बच्चे हों तो ऐसे।"
"राजकुमार किस बात में कम हैं ? युवरानीजी!"
"ऐसी लड़की का पाणिग्रहण करें तो उनके साहस-पराक्रमों के लिए अच्छा मार्ग-दर्शन मिलेगा।"
"पर करें क्या? वह एक साधारण हेग्गड़ती की गर्भ-प्रसूता है। यदि ऐसा न होता..."
"हम इस दिशा में नहीं सोच रहे हैं। हम खुद कहें तब भी हमारी बात मान्य हो सकेगी या नहीं, यह हम नहीं जानती। इस कन्या का पाणिग्रहण करने लायक भाग्यवान् कौन जन्मा है-यही सोच रहे हैं।"
"अभी उसके लिए काफी समय है न?" ।' यह ठीक है, अभी उसके लिए काफी समय है। फिर भी अभी से इस बारे
500 :: पट्टमहादेवी शान्तला