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पहुँचा देना मेरा उत्तरदायित्व है। मुझ जैसे साधारण व्यक्ति के लिए यह बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है। श्रीदेवी, तुम्हारी सुरक्षा कहाँ रहने पर हो सकती है, इस पर मैं सोचविचार कर निर्णय करूंगा। परन्तु तुम अभी यह बात कृपा करके अम्माजी से न कह बैठना। वह तुमको बहुत चाहती है। तुम्हारे यहाँ से प्रस्थान करने के पहले उसके मन को तैयार करूँगा, शायद इसके लिए उससे कुछ झूठ भी बोलना पड़ेगा। अच्छा बहिन !' कहकर उठे और दो कदम जाकर मुड़े, "तुम्हें कुछ मानसिक कष्ट तो नहीं हुआ, परेशान तो नहीं हुई न?"
"भैया, मैं वस्तुस्थिति से परिचित हो चुकी हैं। आप भी परेशान न हों।"
"हमारे प्रभु के आने पर यह बात उनके कानों तक पहुंच जाए कि यहाँ इस तरह की अफवाह उड़ी थी तो क्या होगा, इसके अलावा मुझे कुछ और चिन्ता नहीं।"
"अगर ऐसी स्थिति आयी तो सारी बातें उनसे मैं स्वयं कहूँगी। आप किसी बात के लिए परेशान न हों, भैया।"
"ठीक है, बहिन।" कहकर वे चले गये।
श्रीदेवी भी बारहदरी में जाकर शान्तला की प्रतीक्षा में खड़ी हुई ही थी कि उधर से गालब्बे गुजरी, "अम्माजी कहाँ है, गालब्बे?"
"वहाँ पीछे की फुलवारी में है।" और श्रीदेवी शान्तला को खोजती हुई फुलवारी में जा पहुंची।
मारसिंगय्या और श्रीदेवी की बातचीत के तीन दिन बाद का दिन सोमवारी अमावस्या थी। हेग्गड़े मारसिंगय्या ने धर्मदर्शी और पुजारियों को पहले ही सन्देश भेज दिया था कि शाम को वे परिवार के साथ मन्दिर आएंगे। उन्होंने अपने परिवार के सभी लोगों को, नौकरानियों तक को, सब तरह की सज-धज और श्रृंगार करके तैयार होने का आदेश दिया। हेग्गड़े मारसिंगय्या कभी इस तरह का आदेश नहीं दिया करते थे। माचिकब्बे को शृंगार के मामले में उन्होंने ही सरलता का पाठ पढ़ाया था। माचिकल्वे ने इस आदेश का विरोध किया। "यह तो विरोधाभास है। सुन्दर स्त्री को, वह निराभरण हो तो भी मर्द उसे घूरते हैं, अगर वह सज-धजकर निकले तब तो वे उसे खा ही जाएँगे। और आज की हालत में तो अलंकृत होकर जाना, खासकर हम लोगों के लिए, बहुत ही खतरनाक है। श्रीदेवी के इधर से निकलने तक हम लोगों का बाहर न जाना ही अच्छा है।"
"जो कहूँ, सो मानो" बड़ी कठोर थी हेगड़े की आवाज । उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना ही वह वहाँ से चल दिये। माचिकच्चे ने कभी भी अपने पति के व्यवहार में ऐसी कठोरता नहीं देखी थीं। आगे क्या करे, यह उसे सूझा नहीं। श्रीदेवी से विचार
Tum :- पद्महादेवी शान्तला