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आने का कारण आप ही जानें। अगर मुझसे कोई गलती हुई थी तो बताने पर अपने को सुधार लेती। परन्तु बहुत समय तक इस तरह न आये तो..." उसका दुःख दुगुना हो गया। बात रुक गयी।
"आओ, बैठो।" "आपको मुझ पर जब गुस्सा हो..." "क्या मैंने गुस्से में बात की है?" "तो फिर आये क्यों नहीं?" "फुरसत नहीं मिली, बहुत अधिक अध्ययन करना था।"
"वह सब बहाना है, मुझे मालूम है। आपका अन्यत्र आकर्षण है। उस हेग्गड़ती की लड़की का गाना, नाचना और पाठ, साथ-साथ उसका संग चाहिए..."
"पद्मला, बेवकूफों की तरह बातें मत करो। अण्ट-सण्ट बातें करोगी तो मुझे गुस्सा आएगा। अभी खाते वक्त जो बात सुनी वह क्या इतनी जल्दी भूल गयौं । विश्वास होना चाहिए परस्पर, दोनों में। किसी एक में अविश्वास हो जाए तो फल-प्राप्ति नहीं होगी। हेग्गड़ती ने बहुत अनुभव की बात कही। मैं सत्य कहूँ नो भो तुम न मानो तो मैं तुम्हें समाधान नहीं दे सकता। लो मैं अब चला।" बल्लाल ने कहा।
"जिन पर विश्वास करते हैं उनसे खुले दिल से बातें नहीं करें इस प्रश्न का उत्तर हेग्गड़तीजी क्या देंगी, यह उनसे पूछ आएंगे?"
__ "मेरे जवाब देने से पहले तुम्हें यह बात नहीं कहनी चाहिए थी, पाला। तुम सबको उस हेग्गड़े के घरवालों से कुछ दुराव है, न जाने क्यों, यह बात जब कह रहा हूँ तो खुले दिल से ही कह रहा हूँ। उनसे तुम लोगों को क्या कष्ट हुआ है?"
"मुझे तो कुछ नहीं हुआ।" "तो और किस-किस को तकलीफ हुई है?" "मैं नहीं जानती।" "फिर उनके बारे में ही ऐसी बातें क्यों?" "मेरी माँ कहती थी कि वे हम-जैसी हैसियतवालों के साथ रहने योग्य नहीं।" "इसी से तुमने ऐसा विचार किया?"
"हाँ, मुझे क्या मालूम। सर्वप्रधम जब उनको देखा मेरो माँ ने तबसे वे मुझसे यही कहती आयी हैं। इसलिए मुझमें भी यही भावना है।"
"अगर यही बात हो तो आज का यह सारा न्यौता-न्योता क्यों किया?"
"मुझे क्या मालूम ! बड़े लोग क्या काम क्यों और कब करते हैं यह सब मुझे मालूम नहीं होता।"
"हेगड़े की लड़की तुम्हारी बगल में खाने बैठी इसलिए तुम्हारे गले से खाना नहीं उत्तय, है न?"
283 :: पट्टमहादेवी शान्तला