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परिवार के लोग तुम्हारे उपनयन के सन्दर्भ में जो नहीं आये। उस कारण से मैंने तुमसे बात की थी, याद है।"
"क्या? क्या बात की थी, भैया?"
"उसके बारे में बाद में बात करेंगे। इस समय तो मेरे मन में मुख्यत: जो बात खटक रही है, उसका परिहार तुमसे हो सकेगा, बिना छिपाये सच्ची बात कहना।"
"तो भैया, तुमसे छिपाने जैसी बात मैं जानता हूँ, यही तुम्हारा अभिमत है न?"
"मैं तो यह नहीं कह सकता कि तुम्हारा उद्देश्य ऐसा है। मेरा कहना इतना ही है कि जो बात मुझे मालूम नहीं वह तुम जानते हो सकते हो।"
"ऐसी बात हो भो क्या सकती है, भैया। हम दोनों को कोई बात मालूम होती है तो माँजी से। माँजी मुझसे एक बात और तुमसे दूसरी बात कहेंगी? ऐसा भेदभाव माँ कर सकती है, ऐसी तुम्हारी धारणा है?" ___ "यह सन्दर्भ ही कुछ सन्दिग्ध है, छोटे अप्पाजी। इसीलिए...."
"भैया, तमको माँ के विषय में सन्देह कभी भी नहीं करना चाहिए। यदि ऐसी कोई बात हो तो तुम सीधे माँ से ही पूछ लो। वे तुम्हारे सारे सन्देह दूर करेंगी। तुम्हें क्या मालूम है क्या नहीं, मुझे क्या मालूम है क्या नहीं, यह हम दोनों नहीं कह सकते, माँ जरूर कह सकती हैं जिनके स्वभाव से तुम अपरिचित नहीं हो। उनका स्वभाव ही ऐसा है कि कोई उन्हें दुःख भी दे तो वे उसको भी कोई अहितकर बात नहीं कहेंगी।"
"बात क्या है सो जानने के पहले ही तुमने व्याख्यान देना शुरू कर दिया न?'
"बात क्या है सो सीधा न बताकर तुम्ही ने विषयान्तर कर दिया तो मैं क्या करूं, भैया?"
"बात यही है, कि वे बलिपुर के हेग्गड़े तुफान जैसे आये और गये, किसी को पता तक नहीं लगा। ऐसा क्यों?"
"हाँ, तुम तो उस समय दण्डनायिका की बेटी के साथ रहे । उन बेचारे ने बड़े राजकुमार से मिल न पाने पर बहुत दुःख व्यक्त किया।"
"यह बात मुझे किसी ने भी नहीं बतायी।" "तुमने पुछा नहीं, किसी ने बताया नहीं। माँ से पूछ लेते तो वे ही बता देती।"
"कैसे पूछ, भैया, उधर दण्डनायक के घर पर हेग्गड़े और उनके परिवार के बारे में पता नहीं क्या-क्या बातें हुई। दण्डनायिका कह रही थी, आह्वान- पत्र भेजने पर भी नहीं आये, कितना घपण्ड है, राजमहल का नमक खा ऐसा घमाण्ड करनेवाले...."
"भैया, सम्पूर्ण विवरण जाने बिना किसी निर्णय पर नहीं पहुंचना चाहिए। क्या तुम्हें निश्चित रूप से मालूम है कि आमन्त्रण-पत्र उन्हें मिला था?"
"हाँ, दण्डनायक ने स्वयं कहा है। आमन्त्रितों की सूची में उनका नाम छूट गया था तो स्वयं दण्डनायिका ने उनका नाम जोड़ा था।"
"माँ ने भी ऐसा कहा था। फिर भी आमन्त्रण-पत्र पहुंचा है, इसके लिए उतना
पट्टमहादेवो शान्तला :: 325