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जानती थी कि यद्यपि वे नहीं मानेंगे। लेकिन वह आगे बढ़ी तो उसकी तलवार से उन्हें चोट लग सकेगी। ऐसी स्थिति उत्पन्न करने की उसकी इच्छा भी नहीं थी। इसलिए हार को चिन्ता न कर उसने स्पर्धा समाप्त करने का विचार किया। “आज का अभ्यास काफी है। है न, मामाजी?"शान्तला ने कहा।
"हाँ, अम्माजी, आज इतना अभ्यास काफी है। आज आप दोनों ने अपनी विद्या के कौशल का अच्छा परिचय दिया है।" - दोनों खड़े हो गये, दोनों हाँफ रहे थे। दोनों की आँखें मिलीं। हाँफती हुई शान्तला की छाती के उतार-चढ़ाव पर बिट्टिदेव की नजर कुछ देर टिकी रह गयी।
उदयादित्य उसके पास आया और बोला, "अम्माजी थोड़ी देर और स्पर्धा 'चलती तो भैया के हाथ-पैर थक जाते और वह लेट जाते।" फिर उसने अपने भाई की ओर मुड़कर कहा, "क्या पैर दुख रहे हैं?"
"हाँ, हाँ, बैठकर ताली बजानेवाले को थकावट कैसे मालूम पड़ सकती है? तुम पूरे भाट हो।" बिट्रिदेव ने अपनी खीझ प्रकट की।
"भाटों से राजे-महाराजे और राजकुमार ही खुश होते है, तभी तो उन्ह अमन यहाँ नियुक्त कर रखते हैं।" शान्तला ने करारा उत्तर दिया।
"वह सन्न भैया पर लागू होता है, जो सिंहासन पर बैठेंगे। हम सब तो वैसे ही हैं. जैसे दूसरे हैं।"
बिट्टिदेव अभी कुछ कहना चाहता था कि शान्तला का टट्ट हिनहिनाया। निश्चित समय पर रायण घोड़े ले आया था। सिंगिमय्या ने कहा, "राजकुमारों के भोजर का समय है, अब चलें।"
बिट्टिदेव बोले, "यह आपका भी भोजन का समय है न?"
"हमारा तो कुछ देरी हुई तो भी चलता है। आए लोगों का ऐसा नहीं होना चाहिए। सब निश्चित समय पर ही होना चाहिए।" सिंगिमय्या ने कहा।
"ऐसा कुछ नहीं। चाहें तो हम अभी भी अभ्यास के लिए तैयार हैं। हैं न उदय?" बिट्टिदेव ने पूछा।
"ओ, हम तैयार हैं।" उदयादित्य बोला।
"इस एक ही का अभ्यास तो नहीं है, अन्य विषय भी तो है। अतः राजकुमार पधार सकते हैं।" सिंगिमय्या ने कहा।
रायण के साथ रेविमय्या भी अन्दर आया था। उसने कहा, "अम्माजी को भी युवरानीजी ने भोजन के लिए बुलाया है।"
भोजन के समय शान्तला को मालूम हुआ कि आज बिट्टिदेव का जन्मदिन है तो उसने सोचा पहले ही मालूम होता तो मां से कहकर कुछ भेंट लाकर दे सकती थी। भाजन के बीच ही में बिट्टिदेव ने कहा, "आज शान्तला ने तलवार चलाने में मुझे हरा
पट्टमहादेन शामला .: 1