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परन्तु आत्मीयों के प्रति द्रोह उनके लिए समय नहीं। जो भी हो, पहले यहाँ तो ठीक कर लें. तब वहाँ ठीक करने की बात उठाएँ।"
"आप कहें तो ठीक हो सकती है।"
"यह मेरी बहिन है सही, फिर भी मैं इस सम्बन्ध में कोई निर्णय कर सकूँगा यह नहीं कहा जा सकता।"
चामने वादाम और केसर मिश्रित दूध के दो लोटे, एक परात में लेकर आयी, "लौजिए भैया, यह दूध।" भाई के सामने परात बढ़ाया तो सही लेकिन उसकी तरफ देख न सकी।
गंगराज को उसके मुख पर परेशानो और भय के वे भाव अब नहीं दिखे जो कल क्षण पूर्व दिखे थे। उसने एक लोरा लिया और परात मरियाने के पास सरका दिया। उसने भी एक लोटा लिया।
गंगराज ने पूछा, "तुम नहीं लोगी?"
"मैं बच्चियों के साथ पीऊँगी, अभी उनकी पढ़ाई चल रही है।'' चापम्ने ने उत्तर दिया।
दोनों दूध पी चुक तब भी मौन छाया रहा। बात छेड़नी थी गंगराज को हो और चामाचे उसकी बातों का सामना करने के लिए तैयार बैठी थी। पत्नी और उसके भाई को मरियाने कुत्तृहल भरी नजर से देख रहा था।
अन्त में गंगराज ने कहा, "चा!" "क्या. भैया.'' कहती हुई उसने धीरे से सर उठाया।
"कई बार ऐसे भी प्रसंग आते हैं जब प्रिय लगने पर भी और मन के विरुद्ध होने पर भी कोई बात कहनी ही पड़ती है। राज-निष्ठा अलग चीज है और सगेसम्बन्धी की बात अलग है। किन्तु इन दोनों सम्बन्धों के निवांह के लिए मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ। राज परिवार से. उसमें भी युवराज और युधरानी जैसे उदार मन के व्यक्तियों के द्वेष का पात्र बनने का तुमने निश्चय किया हो तो तुम्हारी मर्जी, वरना स्पष्ट कह] कि राजकुमार के उपनयन का आमन्त्रण-पत्र बलिपुर के हेगाड़ी को न भेजने का पइबन्ध तुमने क्यों किया। तुम्हारा यह षड्यन्त्र हम सब पर अविश्वास का कारण बना है. और अब तो यह इस स्तर तक पहुँच गया कि इस अपराध के कारण, प्रधान होने के नात मेरे द्वारा तुम्हें दण्ड भी दिया जा सकता है। बताओ, क्या कहती हो?'।
___ "कहना क्या है भैया, ऐसी छोटी बात यहाँ तक पहुँच सकती है, इसको मैंने कल्पना नहीं की थी।"
"दीवारों को भी आंग्वें होता है, कान होते हैं. हवा में भी खबर फैलाने की शक्ति होती है, क्या यह बात तम्हें मालूम नहीं? तुम्हारी अकल पर परदा पड़ गया है जो तुम इस छोटी बात करती हो? बात अगर छोरी होती तो तुम्हारी तरफ से पं ही
17. : पट्टमहादवा शान्तला