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प्रात:काल मंगल-स्नान, उपाहार आदि के बाद भोजन के समय तक किसी को कोई काम न था। जहाँ तहाँ छोटी गोष्ठियाँ बैठी थीं। शान्तला, युवरानीजी और हेग्गड़तीजी की। सिंगिमय्या, रावत और मायण की। बोकिमय्या और नागचन्द्र की। शिल्पी दासोज और चावुण नहीं थे। गंगाचारी अकेला क्या करे, इसलिए वह दोनों कवियों की गोष्ठी में ही आ बैठा।
दोनों राजकुमार एक जगह बैठे-बैठे ऊब गये। बिट्टिदेव में रेविमय्या को बुलाकर उसके कान में कुछ कहा। वह चुपचाप वहाँ से खिसक गया। थोड़ी ही देर में जूतग आया और बिट्टिदेव के कान में उसने कुछ कहा। बिट्टिदेव ने कहा, "ठीक" और बूतुग वहाँ से चला गया।
थोड़ी देर बाद बिट्टिदेव और उयादित्य घर के अहाते में आये और वहीं प्रतीक्षा में खड़े यूतुग के साथ पिछवाड़े की अश्वशाला से होते हुए फुलवाड़ी में गये।
चारों ओर के सुगन्धित पत्र-पुष्यों की सुरभि से वह स्थान बड़ा मनोहर था। रेविमय्या वहाँ चमेली को लताओं के मण्डप के पास उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। बिट्टिदेव और उदयादित्य वहीं जा पहुँचे। बूतुग वहाँ से लौटकर घर के अन्दर चला गया।
लता-मण्डप के अन्दर बाँस के सुन्दर झुरमुट के चारों ओर चौकोर हरा हरा कोमल घास का गलीचा था। रेविमथ्या ने वहाँ बैठने को कहा तो बिट्टिदेव ने पूछा, "यहाँ क्या काम है रेषिमय्या?"
"यहाँ रोशनी और हवा अच्छी है। और..." रेविमय्या कह ही रहा था कि वहाँ कहीं से स्त्रियों के खांसने की आवाज सुनाई पड़ी। बात वहीं रोककर रेविमय्या छलांग मारकर बाँसों के झुरमुट के पीछे छिप गया। उदयादित्य भी उसके साथ छिप गया। दासल्वे के साथ शान्तला आयी थी।
"रेविमय्या भी क्या जल्दी करसा है ? इधर ऐसा क्या काम है ? माँ को अचानक किसी काम से जाना पड़ जाए तो युबरानीजी अकेली रह जाएँगी। मुझे जल्दी जाना चाहिए।" यह शान्तला की आवाज थी।
"छोटे अप्पाजी का जी ऊब रहा था। इसलिए बुलाया है आपको।" "कहाँ हैं वे?" "बाँस के झुरमुट की उस तरफ।" "इन्हें इधर धूप में क्यों बुला लाये, रेविमय्या ?"
।'जगह सायेदार है, अम्माजी घर के अन्दर उतना अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए ऐसा किया। गलती की हो तो क्षमा करें, अम्माजी!"
"गलती क्या, तुम्हारे विचार ही सबको समझ में नहीं आते। कभी-कभी तुम्हारी रीति व्यावहारिक नहीं लगती। ओहीं, छोटे अप्पाजी भी यही हैं।" वहीं
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दही शानना