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किया।
मायण ने सिर खुजाते हुए कहा, "कुछ सूझता नहीं।" शान्तला बोली, "आप ही कहिए, मामाजी।" "राजकुमार ही कुछ कहें तो..." कहकर सिंगिमय्या ने बिट्टिदेव की ओर देखा।
"किस्सा-कहानी हम बालक आपस में कहें-यह तो ठीक है, मगर बड़ों के समक्ष यह सब ठीक लगेगा?" विष्ट्रिदेव ने मानो शान्तला की तरफ से भी यह बात
कुछ क्षणों के लिए फिर मौन छा गया। कुछ देर बाद बिट्टिदेव ने ही पूछा, "इस गाँव के पश्चिम में एक मानवाकार गण्ड-भेरुण्ड की स्थापना की गयी है, इसके पीछे कोई आशय है ?"
"बिना आशय किसी की स्थापना नहीं की जाती। कोई-न-कोई आशय अवश्य होगा।" बीच में ही मायण बोल उठा।
"क्यों ररावतजी इस बारे में आपको भी कुछ जानकारी हैं?" विट्टिदेव ने माया से पूछा।
"मुझे अधिक तो मालूम नहीं, राजकुमारजी। परन्तु इसे जब कभी देखता हूं, मेरे मन में यह भावना जागती है कि दुरंगी चाल चलनेवाले पर कभी विश्वास पत रखो।" मायण ने कहा।
"दुरंगी चाल के क्या माने? घोड़े की चालें कई तरह की होती हैं। तुरकी चाल, परपट आदि-आदि। यहो न आपका मतलब?' बिट्टिदेव ने पूछा।।
"घोड़ा मनुष्य नहीं राजकुमारजी। रावत होने से मुझे घोड़े की सब चालें मालूम हैं । मैंने तो मानव के बारे में कहा है। बाहर कुछ और भीतर कुछ। मुँह में राम-राम, बगल में छुरी। इस तरह की रीति, यही दुरंगी चाल है।"
"यह गण्ड भेरुण्ड खड़ा करनेवाले चामुण्डराय की विरुदावनी में गण्ड. भेरुण्ड एक विरुद था, सुनते हैं। पीछे-पीछे क्या होता है या हो रहा है उसे वे प्रत्यक्ष देखकर सावधानी बरतते थे । गण्ड-भेरुण्ड की आँखें गिद्ध की-सी होती है, सुनते हैं। इसीलिए यह आगे और पीछे स्पष्ट दिखाई देने का प्रतीक है। ऐसा नहीं हो सकता क्या?" शान्तला ने अपना मत व्यक्त किया।
"यह भी हो सकता है। पर मुझे जो लगा सो मैंने बताया।" मायण बोला।
"श्रवणबेलगोल में बाहुबली की मूर्ति गढ़वानेवाले यही चामुण्डराय हैं न?" बिट्टिदेव ने पूछा।
___ "नहीं, वे अलग हैं और ये अलग हैं। वे गंगराजा के आश्रित थे और ये चालुक्य राजा के आश्रय में रहे आये। वनवासी में राज-प्रतिनिधि थे। इनकी दृष्टि जितनी निर्मल थी, मन भी उतना ही विशाल । सहिष्णुता के तो वे सजीव मूर्ति थे। उनके सामने का
पट्टमहादेवो गाजला :. 25