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कि वह अच्छी लड़की है।"
"तुम्हारे बारे में उसके क्या विचार हैं?"
"यह कैसे बताऊँ पिताजी? वह मुझे गौरवपूर्ण दृष्टि से ही देख रही थी। चामला और उसमें अधिक मेलजोल था। यह कह सकते हैं कि चामला उसे बहुत चाहती है।"
"तो क्या, तुम नहीं चाहती उसे ?" "ऐसा नहीं, हम दोनों में उतना मेलजोल नहीं था, बस।" "कोई द्वेष-भावता तो नहीं है न?" "उसने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे ऐसी भावना होती।" "हेग्गड़तीजी कैसी है?"
"युवरानीजी उनके प्रति स्वयं इतना प्रेम रख सकती हैं तो वे अच्छी ही होनी चाहिए।"
"सो तो ठीक है; मैं पूछता हूँ कि उनके बारे में तुम्हारे विचार क्या हैं?"
"वे बहुत गौरवशाली और गम्भीर हैं। किसी तरह का जोर-जुल्म नहीं करतीं। अपने में सन्तुष्ट रहनेवाली हैं।"
"उनके विषय में तम्हारी माँ के क्या विचार हैं?" "माँ को तो उनकी छाया तक पसन्द नहीं।" "क्यों?" "कारण मालूम नहीं।" "कभी उन दोनों में कुछ कड़वी बातें हुई थी?" "जहाँ तक मैं जानती हूँ ऐसा कुछ नहीं हुआ है।"
"तुम्हें उनके प्रति आदर की भावना है; युवरानीजी उनसे प्रेम रखती हैं ; तुम्हारी माँ को भी उनके प्रति अच्छी राय होनी चाहिए थी न?"
"हाँ होनी तो चाहिए थी। मगर नहीं है। मैंने भी सोचा। क्योंकि पहले ही से माँ उनके प्रति कुछ कड़वी बातें ही किया करती थीं। उसे सुनकर मेरे मन में भी अच्छी राय नहीं थी। परन्तु मैंने अपनी राय बदल ली। पर माँ बदली नहीं।"
"तुमने इस बारे में अपनी माँ से बातें की ?"
"नहीं। माँ सब बातों में होशियार हैं तो थोड़ा बेवकूफ भी हैं। यह समझकर भी उनसे ऐसी बातें करें भी कैसे? अपने को ही सही मानने का हठी स्वभाव है माँ का। वे हमेशा 'तुम्हें क्या मालूम है, अभी बच्ची हो, तुम चुप रहो' वगैरह कहकर मुंह बन्द करा देती हैं। इसलिए मैं इस काम में नहीं पड़ी।"
"तुम्हारी माँ के ऐसा करने का कोई कारण होना चाहिए न?" "जरूर, लेकिन वह उन्होंने आपसे कहा ही होगा। मुझे कुछ मालूम नहीं।"
पट्टमहादेवी शान्तला :: 403