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"हाँ, बेटी। मुझे मालूम है कि यह सब तुम्हारी समझ में नहीं आया होगा। पर मैं भी सोच रहा हूँ कि तुम्हें कैसे समझाऊँ? अब देखो, मैंने तुमसे संयम से रहने को कहा। ऐसा कहना हो तो सन्दर्भ कैसा हो सकता है, यह तुम्हें एक उदाहरण देकर बताता हूँ। यह केवल उदाहरण है, इसे इससे अधिक महत्त्व देने की आवश्यकता नहीं। बड़े राजकुमार के साथ तुम्हारे विवाह की कोशिश चल रही है, अगर इस कोशिश का फल उल्टा हो जाए या वैसी हालत पैदा हो...।" उनकी बात पूरी भी न हो पायी थी कि घबड़ाकर पद्मला रो पड़ी। उसकी यह हालत मरियाने से देखी न गयी। धुमाफिराकर बात समझाने की कोशिश की। परन्तु जिस दिमाग में हाथ में तलवार लेने की प्रेरणा क्रियाशील रहती हो उस दिमाग में कोमल-हृदय बालिका को बिना दुखाये समझा सकने का मार्दव कहाँ से आता? वे उसे अपने पास खींचकर प्यार से उसकी पीठ सहलाते हुए बोले, "बेटी, पोय्सल राज्य के महादण्डनायक की बेटी होकर भी तुम केवल एक उदाहरण के तौर पर कही गयी बात को ही लेकर इतनी अधीरता दिखा रही हो। तुम्हें डरना नहीं चाहिए। तुम्हारी आशा को सफल बनाने के लिए मैं सब कुछ करूँगा। तुम्हारे मामा भी यही विचार कर रहे हैं। इस तरह आँचल में मुंह छिपाकर रोती रहोगी तो कल महारानी बनकर क्या कर सकोगी? कई एक बार कठोर सत्य का धीरज के साथ सामना करना होगा, तभी अपने लक्ष्य तक पहुंच सकोगी। ऐसी स्थिति में आँचल में मैंह छिपाकर बैठे रहने से काम कैसे चलेगा। मुंह पर का आँचल हटाओ और मैं जो कहता हूँ वह ध्यान से सुनो।" कहते हुए अपने करवाल पकड़नेवाले हाथ से उसकी पीठ सहलाने लगे। थोड़ी देर बाद, उपड़ते हुए आँसुओं को पोंछकर उसने उनकी ओर देखा तो वे बोले, "बेटी, अब सुनो। युवराज, राजकुमार और युवरानीजी के लौटने के बाद भी उनके दर्शन शायद न हो सकें, इस तरह की परिस्थितियां उत्पन्न हो गयी हैं। इन परिस्थितियों के बारे में कुछ नहीं पूछना ही अच्छा है क्योंकि उन्हें उत्पन्न करनेवाले हमारे ही आप्त जन हैं। उनका कोई बुरा उद्देश्य नहीं है । परन्तु अपनी जल्दबाजी और असूया के कारण वे ऐसा कर बैठे हैं। ऐसी स्थिति उत्पन्न न होने देने के प्रयत्न में ही तुम्हारे मामा ने तुम्हारी माँ को बुलाया है। उनके उस प्रयल को निष्फल होने की स्थिति में सबसे अधिक दुःख तुम्हें होगा, यह मुझे मालूम है। तुम निरपराध बच्ची हो। ऐसी हालत का सामना करने की स्थिति उत्पन्न नहीं होनी चाहिए थी! पर उत्पन्न हो गयी है। इसलिए कुछ समय तक राजकुमार का दर्शन न हो तो भी तुम्हें परेशान नहीं होना चाहिए । दूर रहने पर मन एक तरह से काबू में रहता है। युद्धभूमि से लौटने के बाद युवराज वेलापुरी में नहीं रहेंगे। महाराज की इच्छा है कि वे यहीं रहें। बताओ, कुछ समय तक, राजकुमार के दर्शन न होने पर भी तुम शान्ति और संयम के साथ रहोगी कि नहीं?"
बेचारी ने केवल सिर हिलाकर सम्मति की सूचना दी। कुछ देर तक पिताजी
पट्टमहादेवी शान्तला :: 405