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दण्डनायिका के बच्चे भी खेल-खिलवाड़ में ही समय बितानेवाले रह गये थे। कहाँ, क्या और कैसे हो रहा है यह सब समझने-बूझने की उनकी उम्र हो गयी थी। वे घर में इस परिवर्तित वातावरण को भाँप चुकी थीं। परन्तु इस तरह के परिवर्तन का कारण जानने में वे असमर्थ थीं। अगर पूछे भी तो क्या जवाब मिलेगा, यह वे समझ सकती थीं। यों उनका उत्साह कुण्ठित हो रहा था। इन कारणों से उनका शिक्षण और अभ्यास यान्त्रिक ढंग से चल रहा था।
इस परिवर्तित वातावरण का परिणाम पद्मला पर कुछ अधिक ही हुआ था। उससे जितना सहा जा सकता था उतना उसने सह लिया। आखिर एक दिन उसने माता से पूछने का साहस किया, "माँ, आजकल घर में राजमहल के बारे में कोई बात क्यों नहीं जबकि दिन में एक बार नहीं, बीसों बार कुछ-न-कुछ बात होती ही रहती थी। इस परिवर्तन का क्या कारण है?"
माँ ने कहा, "अरी, जाने दे, हर रोज वही-वही बातें करती-करती थक गयी
उसे लगा कि माँ टरका रही हैं, इसीलिए उसने फिर पूछा, "तुम्हें शायद ऐसा लगे, मगर मुझे तो ऐसा नहीं लगता। क्या कोई ऐसा आदेश जारी हुआ है कि कोई राजमहल से सम्बन्धित बात कहीं न करे?" ___ "लोगों का मुंह बन्द करना तो राजमहल को भी सम्भव नहीं। वैसे भी ऐसा आदेश राजमहलवाले नहीं देंगे।"
"तो क्या युवराज की तरफ से कोई खबर आयी है?" पद्मला ने पूछा। "मुझे तो कोई खबर नहीं मिली।" "पिताजी जाते होते तो आपसे कहते ही, है न?" "यों विश्वास नहीं कर सकते। वे सभी बातें स्त्रियों से नहीं कहते।" "यह क्या कहती हो माँ, तुम ही कह रही थी कि वे सभी बातें तुमसे कहा करते
"उन्हीं से पूछ लो।"
"तो मेरे पिताजी मेरी माताजी पर पहले जैसा विश्वास नहीं रखते हैं?" पद्मला को लगा कि वह बात आगे न बढ़ाए, और वह वहाँ से चली गयी। सोचा, चामला से बात छेड़कर जानने की कोशिश करूं लेकिन फिर समझा कि उससे क्यों छे ? पिताजी के पास जाकर उन्हीं से बात क्यों न कर ली जाए? अगर पिताजी कह दें कि राजमहल की बातों से तुम्हें क्या सरोकार, अम्माजी, बच्चों को बच्चों ही की तरह रहना चाहिए, तो? एक बार यह भी उसके मन में आया कि यदि राजकुमार यहां होते तो उन्हीं से पूछ लेती। राजकुमार की याद आते ही उसका मन अपने ही कल्पनालोक में खो गया।
राजकुमार ने युद्ध-रंग में क्या-क्या न किया होगा? वे किस-किसकी प्रशंसा के
400 : पट्टमहादेवी शान्तला