Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 1
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 380
________________ अपने-अपने वाहन समेत विनायक और कुमार स्कन्द हैं, वाहन नन्दी मित्र, कुबेर आदि भी निरूपित हैं। शिवजी के, मानव-जैसे एक ही सिर और दो ही हाथ हैं, यह सब तो ठीक है परन्तु महेश्वर की गोद में उनकी अर्धांगिनी देवी उमा को बिठाने के बाद भी उन्हें शिल्पी ने सम्पूर्ण पुरुष की तरह नहीं बनाया, इसका कारण समझ में नहीं आ रहा है। लगता है कि वह स्त्री-पुरुष के संयोग का प्रतीक है, शायद शिल्पी की ही कल्पना की यह विशेषता रही होगी।" बिट्टिदेव ने स्पष्ट किया। "राजकुमार ने यह शिल्प जैसा समझा है वह सही है, परन्तु इसे स्त्री-पुरुष का संयोग समझने का कारण भी तो मालूम होना चाहिए, बता सकेंगे?" दासोज ने प्रश्न किया। "इसके एक-दो कारण समझ में आते हैं। महेश्वर के दायें कान का कुण्डल पुरुषों का-सा है और बायें का स्त्रियों का-सा । अभय मुद्रा से युक्त रुद्राक्ष माला लियं दायौँ हाथ बलिष्ट है जो पौरुष का प्रतीक है। परन्तु अर्धागिनी की पीठ को सहारा देकर उसकी कमर को आवृत कर उनका बायाँ हाथ कोमल स्पर्श के लिए आवश्यक कोमलता से युक्त है। मेरा समझना सही है या नहीं, मैं कह नहीं सकता। कोई और विशेषता हो जो मेरी समझ में नहीं आयी हो तो समझाने की कृपा करें।" बिट्टिदेव ने नम्रता से उत्तर भी दिया। बाकिमय्या और शान्तला को राजकुमार की शिल्प-कला की सूझ-बुझ बहुत पसन्द आयो। "राजकुमार की कला-परिशीलन की सूक्ष्म दृष्टि बहुत प्रशंसनीय है। महेश्वर की गोद में उमा के दिखाये जाने पर आमतौर पर किसी का भी ध्यान रहेश्वर के अद्धनारीत्व की ओर नहीं जाता जबकि यहाँ वह विशेषता है। यह विग्रह गढ़ते समय कितनी कल्पना और परिश्रप से काम लिया गया है, इस बारे में मेरे पिताजी कहा करते थे कि इसका वाम भाग तैयार करने के बाद ही महेश्वर का दायाँ भाग पुरुष रूप में महा गया। दोनों आधे-आधे भाग कोमलता और पौरुष के भिन्न-भिन्न प्रतीक होने पर भी समूचे विग्रह की एकरूपता में अवरोधक न बनें इस बात का इतना सफल निर्वाह करना कोई आसान काम नहीं था।" दासोज ने कहा। ___ "ऐसा क्यों किया? पहले महेश्वर की मूर्ति को गढ़ लेते और बाद में उमा का आकार गढ़ लेते तो?" नागचन्द्र ने पूछा। "हाँ, जैसा आपने कहा, वैसा भी किया जा सकता था अगर यह मूर्ति दो अलग-अलग पत्थरों से गढ़ी गयी होती । काव्य में पद्य या वाक्य या शब्द बदले जा सकते हैं, शिल्प में अदला-बदली सम्भव नहीं।" दासोज का उत्तर था। "तो क्या आपकी यह धारणा है कि काव्य-रचना शिल्प-कला की अपेक्षा आसान है?'' नागचन्द्र ने पूछा। "न, न, कृति निर्माण में आपको जो सहुलियतें और स्वातन्त्र्य है वह हम नहीं Exn : गट्टाहादेवी शासना

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