Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 1
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 378
________________ सकती है। शायद इस तरह के अपवादों का कारण भी पूर्व-संचित संस्कार हो सकता है।" "हमारे राजकुमार ऐसे ही अपवाद के एक उदाहरण बन सकते हैं। उनके व्यूहरचना के चित्र लेसने मा ऐसा हार है कि मुहीमने त्यस दिल रहा है।" सिंगिमय्या ने कहा। अब बातों का रुख प्रशंसा को ओर बढ़ता देख बिट्टिदेव और शान्तला को कुछ संकोच होने लगा। बिट्टिदेव ने तो पूछ ही लिया, "इस तरह बड़ों और छोटों को एक ही तराजू पर तोलना कहाँ तक उचित है?" "प्रशंसा से फूलकर खुश होनेवालों की प्रगति नहीं होती, यह कहनेवाले गुरु ही प्रशंसा करने लगें तो वह वास्तविक रीति का अपवाद होगा।" शान्तला में कहा। बात का रुख बदलने के खयाल से बिट्टिदेव ने पूछा, "दासोजाचार्यजी, शिल्पी बनना मेरे लिए असाध्य कार्य है, मानता हूँ, परन्तु शिल्पशास्त्र सम्बन्धी ज्ञान पाना तो मुझे साध्य हो सकता है। इसीलिए इस शास्त्र से सम्बन्ध रखनेवाले ग्रन्थ कौन-कौन हैं, यह बताने की कृपा करें, कोई हर्ज न हो तो।" __ "कोई हर्ज नहीं। गंगाचार्यजी इन सब बातों को अधिकृत रूप से बता सकते हैं।" दासोज ने कहा। "इन कवि-द्वय से हमारे ज्ञानार्जन में विशेष सहायता मिली है, तुलनात्मक विचार करने की शक्ति भी हममें आयी है। उसी तरह से आप दोनों हमें विद्यादान करके शिल्पशास्त्र का ज्ञान कराएँ तो हमारी बड़ी मदद होगी।" बिट्टिदेव ने विनीत भाव से निवेदन किया। "जो आज्ञा । बलिपुर शिल्प का आकर है । यहाँ के मन्दिर, वसति, विहार आदि का क्रमबद्ध रीति से प्रत्यक्ष अनुशीलन करते हुए वे अपनी जानकारी के अनुसार समझाएंगे। इससे हमारा ही फायदा होगा, नुकसान नहीं होगा। जो कुछ मैंने सीखाजाना उसका पुनरावर्तन होगा।' दासोज ने कहा। बात बातों में ही खतम नहीं हुई, उसने कार्यरूप धारण किया। फलस्वरूप दूसरे दिन से ही प्रातःकाल के दूसरे पहर से देव-मन्दिरों के दर्शन का कार्यक्रम निश्चित हुआ। दोनों शिल्पी, तीनों विद्यार्थी, दोनों कवि, रेविमय्या और चावुण पंचलिंगेश्वर मन्दिर गये। अन्दर प्रवेश कर ही रहे थे कि कवि नागचन्द्र ने कहा, "लगता है, यह मन्दिर अभी हाल में बनकर स्थापित हुआ है।" "इसकी स्थापना को सात वर्ष बीत चुके हैं, फिर भी साफ-सुथरा रखा जाने और अभी हाल में बादिरुद्रगण लकुलीश्वर पण्डितजी द्वारा खुद जीर्णोद्धार कराने से यह नवस्थापित लग रहा है।" बोकिमय्या की ओर देखते हुए दासोज ने कहा और उनसे पूछा, "कविजी, आपको कुछ स्परण हैं, इस मन्दिर में देवता की प्रतिष्ठा कब 38.! :: पमहादवा शान्तला

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